SANDEEP BHURTANA
MUJHE
साथ नहीं चाहिए,,
मैं उब गया हूं दूनिया से,,
कुछ समय पहले,, मेरे आंगन में भी थी बेला
चाहत नहीं कोई रही अब मन में,,
पहले वाली बात नहीं अब तन में,,
दुख की दुनिया आ टपकी है, चला गया खुच्चियों का मेला
मन, चंचल, कोमल, निर्मल,,
अनजाने में आस लगाता,,
कितने दूर चले गए हैं,,
क्यों मैं उनको पास बुलाता,,
चल स्वर्ग राही अब तू तो, कितने नरकों को तूने क्षेला
आज यादें टूटकर घर तोड़ा है
अपने हाथों अपना सर फोड़ा है,,
किस्मत अच्छी है कंवल, तेरे साथ भी गया खेल है खेला
मेरे कमरे के कोने में, रहता हूं मैं अकेला
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