Monday, August 29, 2011

हे मां मन्नै इसी जगां ब्याईए

सन्दीप कंवल भुरटाना


मन्नै कोख म्हं ना मरवाईए
मन्नै जाम कै दिखाईए
मन्नै छोड कै ना जाइए,
मेरे रजकै लाड़ लड़ाइए,
हे मां मन्नै इसी जगां ब्याईए
जड़ै क्याकैं का दुख ना हो।




छिक के रोटी खाइए,
अर मन्नै भी खुवाईए,,
जो चाहवै वो ए पाइए,
पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए,
जड़ै क्याकैं का सुख ना हो,,


मां तेरे पै ए आस सै,
पक्का ए विष्वास सै,
तू ए तो मेरी खास सै,
यो खास काम करके दिखाईए,,

मॉं की मैं दुलारी सुं,
ब्होत ए घणी प्यारी सुं,
दिल तैं भी सारी सुं,
पर कदे दिल ना दुखाईए,,

बाबु का काम करणा,
रूप्ए जमा करके धरणा,
इन बिना कती ना सरणा,
काम चला कै दिखाईए,

गरीबी तै तनै लड़-लड़कै,
रातां नै खेतां म्हं पड़-पड़कै,
अपणे हक खातर अड़-अड़कै,
बाबु ब्होत ए धन कमाइए।।
पर मन्नै इसी जगां ना ब्याईए
जडै क्याएं का सुख ना हो।

मंा-बाबु तामै मन्नै पालण आले
मैरे तो ताम आखर तक रूखाले
वे इबे मन्नै ना सै देखे भाले
कदे होज्या काच्ची उम्र म्हं चालै
मेरा घर राम सुख तै बसाईए
अर तु भी बेटी की हत्या नै रूकवाइए

दुनिया की हर मां नै समझाइए
रै लीली छतरी आले आइए
उजडदा घर नै बसवाइए
भुरटाना नै फेर चार बात बताईए
संदीप या कविता हर किते सुणाईए
हर किते सुणाईए, हर किते सुणाईए

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