Thursday, August 11, 2011

प्यार-व्यार के चक्र जालिम


सन्दीप कंवल

प्यार-व्यार के चक्र जालिम, क्यातैं तनै चला दिए।
कंपन होई प्रेम की दिल म्हं, क्यूं नीचै तई हला दिए।।
सीधा-सादा भोला-भाला दिल मैं आग लगाई क्यूं,
आग लगाकै तनै तो रै, सिंगा माटी ठाई क्यूं,
बुरा हाल कर्या रै उसका, वा सोण भी ना पाई क्यूं,
हर एक बात पै मेरा चेहरा, आंख्या मैं वा ल्याई क्यूं,
खाली बाग म्हं, तनै मालिक, ये किसे फूल खिला दिए।

छोटी-छोटी बात करण मैं वा, मजे लेण लागी,
जितणे मजे लेणे ले ले, दिल म्हं तू ए आगी,
तू तेर्अ नाम की मेरै दिल म्हं, जगां कसूत बणागी,
बेसक छोड़ दिए तू मन्नै, पर तू कती ना भुलाई जागी,
जो भी मन्नै भुलाणे थे, वे सारे इब भुला दिए।

दिल की बात हो बिना बताई, ना दिल म्हं रहणी चाहिए,
जो बात मन म्हं हौवे, झट दे सी कहणी चाहिए,
छोटी-छोटी बात भी, आराम तै सहणी चाहिए,
पेड़ पूरा मिलण लागरा, फेर क्यातैं टहणी चाहिए,
दूर-दूर रहण आले हाम्, फेर भी तनै मिला दिए।

जो काम भी कर्या सै तू, सोच समझ कै करा तनै,
एक छोरा अर् एक छोरी का, क्यातैं मन यो हर्या तनै,
तड़फाकै तू रै राजी होरा, पेटा भी ना भरा तनै,
दो जणे तो मार दिए रे, फेर भी कोन्या सरा तनै,
कंवल की जिन्दगी म्हं तन्नै, सुख के दिन रला दिए।
प्यार-व्यार के चक्र जालिम, क्यातैं तनै चला दिए।


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