Tuesday, August 30, 2011

मेरा वो गीत अनजानेपनं में लिखा गया मगर आत्मा के पास आकर बैठ गया हाय रोज़ याद आवे स

BHAI V M BECHEN KI DHANSHU POEM




हाय रोज़ याद आवे स बचपन के दिन
रह-रह के मुहं चिढावे स बचपन के दिन

मेरी एक किलकी त, घर सिर प उठ ज्यां था
मैं खानी पीणी चीज़ां प, जद ए रूठ ज्यां था
स याद मैन्ने, मेरी थी तोतली जुबान
सुण ले था एक ब जो भी, होवे था हैरान
नाच्या करूं था पैरां में, घुंघरू बांध के
हो कितनी ऊँची चाहे चद ज्यूँ था कांध प
किसने फेर थ्यावे स, बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स ..........................

जाते स्कूल में हम, लेके पंजी दस्सी
ठंडा का फंड ना था, पिवा थे रोज़ लस्सी
वो सुलिया डंका और वो छुपम-छुपाई खेलना
माटी का घर बणाके माटी की रोटी बेलना
वो काटके न चप्पल, फेर पहिये बणाने
डंडी के साथ रेहडू, अर टायर चलाणे
आंख्या में आंसू ल्यावे स, बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स .......................

वा हरा समन्दर गोपीचन्द्र आळी कविता गाणी
फेर मछली त ए पुछना, बता दे कितना पाणी
वो गुल्ली डंडा अर वो कंच्या आल्ला खेल
वो चोर सिपाई अर वो नकली थाना जेल
वो लूटना पतंग का, अर गाम के उल्हाने
वो शर्त लाके नहरा पे, दिन में कई ब नहाने
उम्र भर रुलावे स बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

ना दुःख कोए ना चिंता, ना फ़िक्र कोए गम
बालकपणे में सचमुच, बादशाह थे हम
इब चुन तेल लकड़ी और फंस रे सां भंवर में
चाल्ला सां रोज़ लेकिन रह रे सां घर की घर में
जीते जी मन की इब, आरज़ू स याहे
जीवन में एक ब मस्ती, जीवन में फेर आये
बेचैन बणा जावे स , बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
रह रह के मुहं चिढावे स ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Monday, August 29, 2011

हे मां मन्नै इसी जगां ब्याईए

सन्दीप कंवल भुरटाना


मन्नै कोख म्हं ना मरवाईए
मन्नै जाम कै दिखाईए
मन्नै छोड कै ना जाइए,
मेरे रजकै लाड़ लड़ाइए,
हे मां मन्नै इसी जगां ब्याईए
जड़ै क्याकैं का दुख ना हो।




छिक के रोटी खाइए,
अर मन्नै भी खुवाईए,,
जो चाहवै वो ए पाइए,
पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए,
जड़ै क्याकैं का सुख ना हो,,


मां तेरे पै ए आस सै,
पक्का ए विष्वास सै,
तू ए तो मेरी खास सै,
यो खास काम करके दिखाईए,,

मॉं की मैं दुलारी सुं,
ब्होत ए घणी प्यारी सुं,
दिल तैं भी सारी सुं,
पर कदे दिल ना दुखाईए,,

बाबु का काम करणा,
रूप्ए जमा करके धरणा,
इन बिना कती ना सरणा,
काम चला कै दिखाईए,

गरीबी तै तनै लड़-लड़कै,
रातां नै खेतां म्हं पड़-पड़कै,
अपणे हक खातर अड़-अड़कै,
बाबु ब्होत ए धन कमाइए।।
पर मन्नै इसी जगां ना ब्याईए
जडै क्याएं का सुख ना हो।

मंा-बाबु तामै मन्नै पालण आले
मैरे तो ताम आखर तक रूखाले
वे इबे मन्नै ना सै देखे भाले
कदे होज्या काच्ची उम्र म्हं चालै
मेरा घर राम सुख तै बसाईए
अर तु भी बेटी की हत्या नै रूकवाइए

दुनिया की हर मां नै समझाइए
रै लीली छतरी आले आइए
उजडदा घर नै बसवाइए
भुरटाना नै फेर चार बात बताईए
संदीप या कविता हर किते सुणाईए
हर किते सुणाईए, हर किते सुणाईए

मेरे कमरे के कोने में, रहता हूं मैं अकेला

SANDEEP BHURTANA



MUJHE

साथ नहीं चाहिए,,
मैं उब गया हूं दूनिया से,,
कुछ समय पहले,, मेरे आंगन में भी थी बेला

चाहत नहीं कोई रही अब मन में,,
पहले वाली बात नहीं अब तन में,,
दुख की दुनिया आ टपकी है, चला गया खुच्चियों का मेला

मन, चंचल, कोमल, निर्मल,,
अनजाने में आस लगाता,,
कितने दूर चले गए हैं,,
क्यों मैं उनको पास बुलाता,,
चल स्वर्ग राही अब तू तो, कितने नरकों को तूने क्षेला

आज यादें टूटकर घर तोड़ा है
अपने हाथों अपना सर फोड़ा है,,
किस्मत अच्छी है कंवल, तेरे साथ भी गया खेल है खेला
मेरे कमरे के कोने में, रहता हूं मैं अकेला

हरियाणा के सांस्कृतिक प्रहरी अनूप लाठर

sandeep Bhutania



1. हरियाणवी संस्कृति
हरियाणा आज सांस्कृतिक समृद्धि के शिखर पर है। स्वतंत्र भारत के नक्शे पर 1966 में उदय हुए इस छोटे से प्रदेश ने वह समय भी देखा जब इसकी अपनी सांस्कृतिक पहचान ही नहीं रही थी, और एक आज का दौर है जब यह प्रांंत सांस्कृतिक रूप से प्रौढ़ नजर आता है। एक प्रांत का अपनी लुप्त हो चुकी सांस्कृृतिक पहचान को पुन: उभारना व उसे निखार कर दुनिया को अचंभित कर देना कोई छोटी बात नहीं। इसके पीछे कारण तलाशने पर पता चालता है कि कोई न कोई हस्ति है जो इसके पीछे खुद को होम करके प्रदेश को सांस्कृतिक पहचान दिलवाने के लिये जीवन लगा चुकी है।
जैसे राजनैतिक उत्थान के लिये बलिदान की जरूरत होती है, उसी प्रकार सांस्कृतिक उत्थान व उसके बचाव के लिये भी बलिदान आवश्यक है। बलिदान का अर्थ यह नहीं कि शरीर त्याग कर ही आदमी उस मान को प्राप्त करे। बलिदान तो इच्छाओं, पद, पहचान, धन व लोभ-मोह का भी हो सकता है। सांस्कृतिक सैनिकों के लिये शारीरिक बलिदानों की अपेक्षा त्याग अधिक मायने रखता है, तभी वह संस्कृति को बचाने व उसके बढ़ाने में ध्वज वाहक का कार्य कर सकते हैं। अगर हरियाणवी संस्कृति पर दृष्टि पात करें तो हल्के से अवलोकन से ही ज्ञात हो जाता है कि यह कोई थोपी या अपनाई गई संस्कृति नहीं बल्कि इतिहास में दफन होने के बाद पुन: प्रतिष्ठित संस्कृति है, जोकि आज अपने प्राचीन गौरवमयी रूप को और निखार कर सामने आई है। समय के साथ इसने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। उत्तर भारत पर होने वाले बाहरी आक्रमणों व दिल्ली के नजदीक होने के कारण इसे अनेक बलित परिवर्तनों का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद इसका अपने रूप को पुन: प्राप्त कर लेना अपने आप में किसी घोर आश्चर्य से कम नहीं है। इस सांस्कृतिक उत्थान के पीछे अगर गहराई से नजर दौड़ाई जाए तो मालूम होता है कि कोई खुद को जलाकर इसे रोशन कर रहा है जिसके बल पर आज हरियाणवी संस्कृति के गौरववत् प्रत्येक हरियाणवी दुनिया में अपना भाल ऊंचा रखता है।
अनूप लाठर एक ऐसी शख्सियत हैं जिनके बलिदान, त्याग व सेवा स्वरूप आज हरियाणवी संस्कृति इस मुकाम पर है। इस शख्स की सांस्कृतिक साधना का ही परिणाम है कि आज देश के कोने-कोने से लेकर पाकिस्तान सहित दुनिया के दर्जनों देशों में हरियाणवी के दिवाने गर्व महसूस करते हैं। पिछले 30 वर्ष के उनके अनथक प्रयास की बदौलत आज हरियाणा के कितने ही युवक व युवतियां देश की भिन्न-भिन्न संस्कृतिक विधाओं में अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं। कला क्षेत्र से हट कर भी मीडिया जगत में उनके अनुयायी हर ओर देखने को मिलते हैं। अखबारों के डैस्क से लेकर समाचार चैनलों के ऐंकर और न्यूज हैड तक उनके मंजे हुए कलाकारों की बदौलत दुनिया के सामने हरियाणवी का प्रस्तुतिकरण किसी न किसी रूप में बखूबी हो रहा है।
अगर फिल्म जगत की बात की जाए तो माया नगरी मुम्बई की दहलीज़ पर भी आज हरियाणवी अपनी संस्कृति के साथ दस्त$ख दे चुकी हैं। आज अनूप लाठर की बदौलत एक ऐसी सांस्कृतिक सैनिकों की फौज तैयार हो चुकी है जिसे संगठित करके आज के फिल्म निर्माता व निदेशक हरियाणवी में उच्च दर्जे की कलात्मक हरियाणवी प्रस्तुतियां सामने ला सकते हैं। अब सही वक्त आ गया है कि हरियाणा का फिल्म निर्माता जागे और अपने प्रदेश के कलाकारों के बल पर अपनी संस्कृति को चलचित्र व छोटे पर्दे पर गौरव के साथ प्रस्तुत करे ताकि वर्षों के प्रयास से जिन्दा हुई यह गौरवमयी संस्कृति अपनी पहचान कायम रख सके।

Sunday, August 28, 2011

पम्प ब्होत नेता पम्प मारे सै अर जीत जा सै इनपै एक छोटी सी कविता


संदीप कंवल भुरटाना

सब क्यांए म्हं चालरै बडे बडे पम्प
मॉडल की हवा जिद बणे जिद वा चालै रैम्प
राजनीति म्हं दलबदलू नेता मिनत म्हं मारै जम्प
बात जम्प की चालरी,
लागजा आडा जम्प तो टूटज्यां हाड
जिसकी घणी लाठी हो, उसकी होंव ठाड
चोट लाग्यां पाच्छै लेणी पडै दवा
मैं बोल्या रै पम्प आलो, आड्डे पम्प भी मार लिया करो


पाछलै इलैक्शन की गलतिया नै, थोडा ब्होत सुधार लिया करो
न्यूं बोल्ये पम्प सही सै म्हारे इबे, तेल ग्रीस कर दयां सां
जै कोए नहीं मानै राम तै, सोड उसकी भर दयां सां
बात कसूती कहगे वो डर मन्नै भी लाग्या
उनकी भूंडी सूंडी सुणके मै तो घरा आग्या
राजनीति तै बडे किते नहीं घपले घपलम घम्प
सही हवा उसे की बणै जो मारै सही पम्प

अन्ना हजारे जिंदाबाद,,,,,,जिंदाबाद






भाईयों अन्ना जी के अनशन के बाद 6 बार अखबार म्हं मेरा फोटू भी आया
और हामनै भी आपणी औड तै ब्होत जोर लगाया माहरी अर सारे देश के
नौजवानां की मेहनत रंग लाई सै


अन्ना हजारे जिंदाबाद,,,,,,जिंदाबाद

कांग्रेस सरकार की हवा भाई अन्ना नै काड दी
निकम्मी सरकार नै भी आज तीन लीक काड दी
सोनिया भी देश छोड के भाजैगी
जद दिल्ली म्हं आग लागैगी
कोए नहीं बच पावगा
अन्ना का जन लोकपाल आवगा
घबराओ ना मेरे भाईयो
यो बिल जरूर पास हो जावगा
संदीप भुरटाना भी उसे दिन तै
सुख तै रोटी खावगा,
फेर एक गाणा और बणावगा

जन गण मन अन्ना जय हे,,,,,,,,,,,,,,,
या धरती भारत माता,
बाबुराव के लाल तूने
भ्रष्टाचार को खत्म कराता,,
जालिमो के राज को तूने,
कुछ दिनों में हिलाता
सारे देश भूखा है यहां
जब से तू अन्न न खाता
खा लेते हैं दो टूक हम,
असलियत में नहीं भाता
संदीप कंवल भुरटाणे वाला,
गुण तेरे सारै गाता,
भगवान का अवतार तू अन्ना
हर कोई आज तूझे चाहता

संदीप कंवल भुरटाना


Thursday, August 11, 2011

घरां रोटी ना पाई।

Sandeep Kanwal



आज मन्नै माहरै घरां रोटी ना पाई।
गाम का छोरा कुहवाण म्हं मन्नै शर्म आई।।
रोटियां का कै कहणा भाई, लासी नै नाटजा,
बात-बात पै होवंे रौले, झाल नै तु रै डाटजा,
इन रौले झगड़ा म्हं भाई का सिर फोडै़ भाई।
गाम का छोरा कुहवाण म्हं मन्नै शर्म आई।।
पहलां काम नै लोग बांट-बांट करा रै करते,
नाज के कुठले भी वै भरा रै करते,
घरां नाज की टंकी भी मन्नै खाली पाई।
गाम का छोरा कूवांण म्हं मन्नै शर्म आई।।
म्हारे गाम के लोगां नै यो काल खाग्या,
ताउ भरथु भी सारी अपणी जमीन डिगाग्या,
हाडैं थेपड़ी पाथदी वा माहरी ताई।
गाम का छोरा कूवांण म्हं मन्नै शर्म आई।।
हामनै भी गामै एक अभियान चलाणा होगा,
एक-एक बालक ध्यान तै खूब पढ़ाणा होगा,
फेर जगमग भुरटाणा होगा, या ए प्लान बणाई।
आज मन्नै माहरै घरां रोटी ना पाई।
गाम का छोरा कूवांण म्हं मन्नै शर्म आई।।

एक पक्षियों का जोड़ा


स्ंादीप कंवल भुरटाना
प्रेम मिलन चला हुआ है एक छोटी सी कतार में

, डुबा हुआ है। प्यार में।।

प्यार के खेल मेें, दोनों एक होते जाएं,
दोनों एक दूसरे के मन को मोहते जाएं,
फड़-फड़ पंखों से ये दिल अपना बहलाए,
म्ुाख में मुख लेकर ये अद्भूत प्रेम दिखंलाए,
मिलन का खेल सब जगह चल रहा है कतार में,
एक पक्षी साथ छोड़ गया,
साथी का दिल तोड़ गया,
क्या-क्या ख्वाब सजाए उसने,
वो वापिस उनको मोड़ गया,
टूटते-जुड़ते रिष्ते, हजारो हैं संसार में,
एक पक्षी दांए चला गया,
छूसरा पक्षी बांए चला गया,
क्लम कवि की रूक गयी,
एक खतरा भी टला गया,
लिखते-लिखते मन मेरा भी,
डूब गया खूमार में।।।

होसियार सिंह ’लाडी’ सन्दीप कंवल भुरटाना



.
इक जिंद निमाणी पिछे तू,
कातो होया फिरदा झल्ला वे,
बंदा बुलबुला पाणी दा,
ए साह पाणी दियां छल्ला वै।।
हुस्न वेख कदे यार बणाइये ना,
सपां नू कदे दूध प्लाईए ना,
आखर विच एहना डंगना हुंदै,
लग जांदा रोग अवला वै।।
पैसे दे ने सब यार ऐ थे,
तकड़िया बिच तुलदा प्यार ऐथे,
अपणेया ने ही सानु लुट्या ए,
साढ़ा झाड़ गए ओ पल्ला वै।।

जिसदे लई पल-पल मरदे रहे,
दुख जिसदे अपने सीने जड़दे रहे,
सानु छड़ गैरां संग तुर गए औ,
हुण रहा गया लाडी‘ कल्ला वै।।
बंदा बुलबुला पाणी दा,
ए साह पाणी दिया छल्ला वै।।

प्यार-व्यार के चक्र जालिम


सन्दीप कंवल

प्यार-व्यार के चक्र जालिम, क्यातैं तनै चला दिए।
कंपन होई प्रेम की दिल म्हं, क्यूं नीचै तई हला दिए।।
सीधा-सादा भोला-भाला दिल मैं आग लगाई क्यूं,
आग लगाकै तनै तो रै, सिंगा माटी ठाई क्यूं,
बुरा हाल कर्या रै उसका, वा सोण भी ना पाई क्यूं,
हर एक बात पै मेरा चेहरा, आंख्या मैं वा ल्याई क्यूं,
खाली बाग म्हं, तनै मालिक, ये किसे फूल खिला दिए।

छोटी-छोटी बात करण मैं वा, मजे लेण लागी,
जितणे मजे लेणे ले ले, दिल म्हं तू ए आगी,
तू तेर्अ नाम की मेरै दिल म्हं, जगां कसूत बणागी,
बेसक छोड़ दिए तू मन्नै, पर तू कती ना भुलाई जागी,
जो भी मन्नै भुलाणे थे, वे सारे इब भुला दिए।

दिल की बात हो बिना बताई, ना दिल म्हं रहणी चाहिए,
जो बात मन म्हं हौवे, झट दे सी कहणी चाहिए,
छोटी-छोटी बात भी, आराम तै सहणी चाहिए,
पेड़ पूरा मिलण लागरा, फेर क्यातैं टहणी चाहिए,
दूर-दूर रहण आले हाम्, फेर भी तनै मिला दिए।

जो काम भी कर्या सै तू, सोच समझ कै करा तनै,
एक छोरा अर् एक छोरी का, क्यातैं मन यो हर्या तनै,
तड़फाकै तू रै राजी होरा, पेटा भी ना भरा तनै,
दो जणे तो मार दिए रे, फेर भी कोन्या सरा तनै,
कंवल की जिन्दगी म्हं तन्नै, सुख के दिन रला दिए।
प्यार-व्यार के चक्र जालिम, क्यातैं तनै चला दिए।


अजनबी गलियों से

अजनबी गलियों से
निकल रहा एक लड़का
दांए, बांए घरों को देखता,
देखकर सोचता
मेरा भी होगा एक घर
आगे बढ़ता हुआ
चलता हुआ, ख्ुालता गेट
आती अंटी, देखकर मुस्कराई
क्या सोचा, क्या समझा, मैंने नहीं जाना
आगे मिला एक कुता
जो भौंक रहा था
सायद यही कह रहा था
आगे मत जाना
वहां खतरा है
मुड़ती, घुमती गलियों में से
गुजरता, आगे मिली एक सुन्दर बाला
सामने से आती हुई,
नीचे गर्दन किए हुए,
एकदम गुजर गई,
मन को चैन आया,
फिर आया एक मोड़,
वहां दिखाई दिया एक बच्चा,
मुझे बोला, अंकल आ गए,
मैं बोला आ गया बेटा,
धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था,
अपनी मंजिल तक,
फिर हुई मुलाकात एक गुलसन से,
नजारा देखकर समझ में आया,
आज फिर कुछ खास है,
आगे बढ़ा, देखा लगा हुआ पंडाल,
वहां पर सुरू हो रही थी रामलीला,
आखिर मंजिल आ ही गई,
वहीं अपना जर्जर मकान,
वही दोस्तों की महफिल,
वो ही छोटा सा कमरा
चलता हुआ पंखा छोड़कर गया कवि,
छत पर बैठे दोस्त,
सभी मस्त अपने अंदाज में,
सामने भी थी महक,
तैंयारियां चल रही थी,
सज रहे थें आज की रामलीला के लिए,
लिखता रहा, बोलता रहा,
सभी दोस्तों से की मुलाकात,
बताई एक छोटी सी बात,
सब हर्सित, मैं भी खुस,
बस एक पल, एक समय
जो आगे चला ही रहा था,
मैंने रोकी कलम, ठहर कदम,
आराम की खातिर, लेट गया,
बिछाकर पलंग,
उस छोटी सी बात में दम था,
कंवल भी कहां कम था,
बस लिखा डाला एक पैगाम,
सुनहरी साम, बस तेरे नाम ..............................
सन्दीप कंवल

आच्छा, गाम म्हारा सै।।

सन्दीप कंवल भुरटाना

गेहूं आले किलां म्हं, सिरसम का पेड़ा न्यारा सै,,
सारे गामां तै आच्छा, गाम म्हारा सै।।
पड़ी बछन्टी खेता म्हं, अमरूद खडे़ सै मेढ़ पै,
ला राखै सै सुंडिये, हांडे जीपसी रेड पै,,
बलद चालै रहट पै, चालै पाणी का झलारा सै,,
सारे गामां तै आच्छा, गाम म्हारा सै।।
गेहूं की टराली भरी खड़ी, चालण लागरी डरामी,
आम का पेडडा लदा पड़ा, खालै रै छोरे आमी,
एक छोरी खडी सामी, गुठली आम की खारा सै,,
सारे गामां तै आच्छा, गाम म्हारा सै।।
ट्यूबवैल पै थ्री फेस कनेक्षन, होरे सैं ठाठ रै,
ना क्याकैं की आडै टेन्षन, कहरा यो जाट रै,
कुए आले कोठडे का, रंगील नजारा सै,,
सारे गामां तै आच्छा, गाम म्हारा सै।।
भैसा खातर बो राखी, बरसीम, जई बाजरी,,
ताई भी भैसां गैल्या, लेके डंडा भाजरी,,
पनघट उपर छोरिंया का, लागरा लारा सै,,
ढाणी म्हं ब्याह होण लागरा, डीजै पै छारी मस्ती,
हाथ की कढोडी चालै सै, देषी सबतै सस्ती,
कह भुरटाणे आला छोरा, कसूता मजा आरा सै।।
सारे गामां तै आच्छा, गाम म्हारा सै।।




Thursday, August 4, 2011

चहक रही चिड़िया

Sandeep Bhurtania............ki 1 kavita Hindi m ...bhi..........padhiyo ....mere......Haryanvi Dhurndharon.........

चहक रही चिड़िया
को देखकर,
लगता हो गई सुबह,
उठना, घूमना, खाना,
पीना सब कुछ शुरू,
हो जाता है तब,
मुर्गे के बांघते ही,
पशुओं को चारा,
डालना कर देते है लोग,
पक्षी चहचहाते साथी,
मानव जीवन के,
पर पता नहीं चलता,
इनके सुख-दुख की घड़ियों का,
हरदम मस्ती में डूबे रहते है,
पर जब कोई चील या बाज,
आकर ले जाता है इनके अंडे,
कोई संाप खाता है जब इनके बच्चे,
तब तो पता चलता है,
इनके रूदन का,
कोसों दूर जाकर शाम को
घर आ जाते है,
जैसे कि मानव,
सारा दिन बाहर काम करके,
शाम को घर आता है,
बहुत से मेल खाते है,
इनके काम, मानव से,
पर हर समय खोये-खोये,
रहते है ये भी,
जैसे मानव भी खोया रहता है,
अपने सुख और दुखों के साथ,
ये भी भटकते रहते है,
सुख की चाह में,
झंुड बनाकर रहना,
मस्ती में डूबना,
फिर शाम को घर आना,
अपने बच्चो से प्यार करना,
सब वे ही काम जो
हम करते है जीवन में,
इस ये पता चलता है,,
कि जीवन एक है,
इसके जीने के तरीके अलग-अलग हैं,,
जैसे भगवान एक है,
उसको पाने के तरीके अलग-अलग हैं,,
ये सभी पहलू है जिंदगी के,,
खुशी से जीते जाओ मेरे यारो,,,
सन्दीप कंवल भुरटाणियां

Wednesday, August 3, 2011

संदीप कंवल भुरटाना

गामां के ठठ आडू नौजवाना नै एक संदेश

क तो खेत का काम ढंग तै कर लिया करो
अपणे बाबू का नाम रोशन कर दिया करो
उसका खंडका धरती म्ंह रगडवाके महान नहीं बणा जाया करदा
ब्याह करवाण की कह दिया करो जै उल्दे काम करा बिन ना सरदा

बाबा पीर की जय
छाती म्हं गोली लागी लाश नै देखके,,
एक बाप आपणे आसंुआ नै सारग्या,,
आज एक बाप आपणे बेटे तै हारग्या,,
अर वो बेटा जो सबमै न्यारा था,
मेरे ताउ ताई की आंख्या का तारा था,,
उसकी हालत देखके सारा गाम हारा था,
वो ओर किसे नै नहीं दोस्तो
म्हारे पडोसियां नै ए मारया था,
अर् बात कै थी,,,,,,,,,,,

एक दिन मेरा भाई भैसा नै चराण जारया था,,
औडे एक और भेंसा का टोल आर्या था,,
उस टोल म्हं एक भैंस जमा ताजा ब्यारी थी,
उस भैसां के टौल नै जमींदारा की छोरी ल्यारी थी,,
फेर एकदम इसा चाला होग्या,
छोरी कै गात का गाला होग्या,
गात गेल्यां हाथ भी पड़ग्या,
छोरी कै तो सांप लड़ग्या,
वा छोरी होई जावै आंधी,,
मेरे भाई नै पाटी बांधी,
इसा जोर का बंध लगाया,
जहर आगै जाण ना पाया,
अर छोरी नै गामै लियाया,
आकै वा ताउ रलदू तै दिखाई,
नू करके मेरे भाई नै उसकी जान बचाई,

जद् पाछै उस छोरी पक्का मन म्हं ठान लिया,,
मेरा भाई उसनै सब किमे मान लिया,
प्यार आले गुल खिलण लागै
वे लुक-छिप कै मिलण लागै,
बात घरकां तई पहुंचगी,
घरका की तो माटी कूटगी,
उसका प्यार आला भूत जागग्या
जमींदारा की छोरी नै ले के भाजगा
जमीदांरा नै मुकद्दमा बणवाया
मेरा ताउ पंचायत म्हं बुलाया
ताउ का खंडका जमीन म्हं रगडवाया
तीन लीक काडके मेरा ताउ रोदां घरा आया

फेर
दो-तीन महीने पाच्छे छोरी नै आपणा घरां फोन मिलाया
जमीदार नै फौन ठाया- अर बोल्या
बेटी चौबीसी के चौतरा पै बैठके न्याय करांगे
गामै उल्टे आ जाओ तारा ब्याह करांगे
दोनूंआ का दिमाग धक्का खाग्या
भाई उनकी भूला म्ह आग्या
उनके थे उल्टे लागै
दोनूं जणे गामै आगै
मारग्या फेरग्या उननै विश्वास
बुलाई फेर पंचायत अर खाप
पंचायत के बीच म्हं छोरी जिंदी गाड दी
अर मेरे भाई की छाती म्हं कै गोली काड दी

अर के खोट था उनका पंचायत आले फैसला करवां सकें थे
दोनूं परिवारां के रोले नै बैठकै सुलझा सकै थे
पर होणी नै कोण टाल सकै था
मेरा ताउ मारअ सारा गैल झखै था
जिद मेरा ताउ भाई की लाश नै लाण जारया था
उसका कालजा मुंह नै आरया था
कै कमी रहगी वो या ए बात विचारै था
रो-रो कै मेरा ताउ भींता कै टक्कर मारै था

जवानी म्हं गलती करण आलो, इस गलती नै बोच लिया करो
मां बाहण बाबू की रे-रे माटी होगी, थोडा सा सोच लिया करो
इन झूठे प्यार के चक्करा म्हं पडके, गहरी नींद सो जाओ सो
जिस मां बाप नै पाले पोशे, मिनटां म्हं खो जाओ सो
जवानी की गलती मैं आज हर कोए खोज्या सै
उसके इस काम पाच्छे घरकां का जीणा दूभर होज्या सै
आपणे दिमाग की नसां पर जोर दिया करो
बूढां धोरे बैठके किमे सीख लिया करो
रोलां झगडा चाल जाया करै पर प्यार प्रेम नहीं चाल्या करै
चोट लागोडी ठीक होज्या, पर या चोट रैध घाल्या करै
नौजवान भाईयो लिखियो, पढियो, नौकरी म्हं फंसियो
इन झूठै प्यार प्रेम मोह माया तै बचियो
धन्यवाद
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Tuesday, August 2, 2011

बदले हालात गामां कै

स्ंादीप कंवल भुरटाना
आज के गामां के हालात देख के ये चार कली लिखी सै भाईयों उम्मीद है तामनै पसंद आंवगी और जै हो सके तो गामां के हालात सुधारण की कोषिष जरूर करियो। ये चार लाइन तारै सामी सैं जिसा मन्नै लाग्या अर तामनै भी नुए लागै सै तो गाबरू गाबरू छोरा तै एक छोटी सी बात कहूं सूं, पंजाब कानी देखके , करदो काम

बदले हालात गामां कै

ना रहे गामां के वे हाल,
गाम हो लिए सैं कंगाल।।
किते भी तो ना दिखता यो भाईचारा रै,
जोहड़ सुखगा, सारै पाणी होग्या खारा रै,
धरती खोद कै नहर बणादी ना पाणी आरा रै,
फसलां का किते भी, ना सही भा थ्यारा रै,
फिरगा मोह माया का जाल,
गाम हो लिए सैं कंगाल।।

सारै रीति रिवाज मिटगे, कोए नोंदा नंुधार नहीं,
भाई-भाई न मारदे, किसे का भी प्यार नहीं,
गोड़ा नुवाण जाणा हो तो, कोए जाण नै तैयार नहीं,
सारै जणे पागल होरे, कोए रहा समझदार नहीं,
या भूंडी बणी कसूती ढाल,
गाम हो लिए सैं कंगाल।।

छोटी-छोटी बातां पै, होज्या बड़ा रौला रै,
थापड़-गुस्से की लड़ाई म्हं, उठ जा सै गोला रै,
खांच कै नै थापड़ लागज्या, होज्या छोरा धोला रै,
पुलिसिएं भी मजे लेरे, लुटै आदमी भोला रै,
सरपंचणी भी खागी माल,
गाम हो लिए सैं कंगाल।।


क्यातैं भूलगे रै लोगो ताम, थामनै कोए ख्याल नहीं,
के होगा थारे बालकां का, उनकी कोए रूखाल नहीं,
कहै भुरटाणे आला, अर्ै यो सतासी का काल नहीं,
कंवल की ना मानी तो, टूटै माया का जाल नहीं,
यो सन्दीप पूछै एक सवाल,
गाम हो लिए सैं कंगाल।।

संदीप कंवल भुरटाना

लो भाईयो तीज का मौका पै एक और गीत तारै नाम
जमा ताजा इबे लिखकै भेजू सूं,,,,,,,,,ठेठ हरियाणवी म्हं
सारे भाईयां नै लोग अर लुगाईयां, चाचा नै ताईया, बहु अर जमाईयां नै,,,,,तीज की ढेर सारी बधाईयां

छोरा गिरकाणा लागै घणा स्याणा, उठदी ए डाला पै चढाया
तीज का दिन यारों, मैं पींग घाल के आया।।।।।ं

सारे जणे मिलके झूलो,
पुराणे रीति-रिवाज ना भूलो,
दारू पी-पी ना रै टूलो सारा तई समझाया।ं
यो छोरा भुरटाणे का, पींघ घाल के आया।।

पींग शिखर आसमान चढाई
सासु का नाक तोड के लाई
सबेरे पहला फेसबुक आलो रै, कसूता मजा आया
यो छोरा भुरटाणे का, पींघ घाल के आया।।

गामां के सब रंग बदलगे,
त्यौहार मनाण के ढंग बदलगे
सबेरे पहलां मेरा बाबु, बरफी का डब्बा लाया।ं
यो छोरा भुरटाणे का, पींघ घाल के आया।।

हलवा सुहाली कोए ना मणावै,
समोसे, रसगुल्ल्ेा चाउमीन खावै,
पेट म्हं आफारा आवै, फेर इन्नो पाणी म्हं मिलाया
गैस का गोला फूटा भाइयों एटम बम्ब बणाया

साच्ची बात लिखके करै चाला
संदीप कंवल भुरटाणे आला
आपणे सारा का राम रूखाया, इबे यो गीत बणाया
दो मिनट लागण कोन्या दी, रत्नावली पै चढाया
यो छोरा भुरटाणे का, पींघ झूल के आया।।

संदीप भुरटाणियां