Sunday, July 10, 2011

संदीप कंवल भुरटाना

किसे जानवर नै ना सताईयो
काल की बात थी,
काली-काली रात थी,
रात नै चाला होग्या,
गात का गाला होग्या,
काल सोमवार था,
म्हारा पाणी का वार था,
मन्नै जोडा टूटलिया गाड्डा,
अर मन्नै लाग्या ब्होत ए जाड्डा,
हिम्मत करके खेत म्हं आग्या,
एकलै नै ब्होत ए डर लाग्या,
इतणै म्हं आग्या मेरा काका,
दोनूंआ नै मिलके खोल्या नाका,
काका चल्या गया,
खतरा फेर ढल्या गया,
एक बिल म्हं पाणी बड़ग्या,
युद्व सा छिड़ग्या,
एक मूसा बिल म्हं तै लिकड के भाजगा,
अर मेरी जान सी काडगा,
लागै घणा स्याणा था,
एक आंख तै काणा था,
लाम्बी उसकी पूंछ थी,
किसारी बरगी मूंछ थी,
खामखां मेर गेल्यां फहगा,
जंादा-जांदा न्यू कहगा,
अर बोल्या भाई,
कितणी ए मेहनत करले,
कुछ नहीं होवगा,
तु तो सारी उम्र नुए,
खेतां म्हं सोवगा,
ब्ेाशक खेत कअ बाहर कै,
तार गाड़ दिए,
जै इसमे किम होज्या,
मेरी मूछ पाड़ दिए,
या कहकै बिल म्हं बड़गा,
अर मै चिन्ता म्हं पड़गा,
मैं सोच करण लाग्या,
एक विचार मन म्हं आग्या,
इबकै खेत नै खाली छोडद्या,
अर् हाल फाली सब तोड़द्या,
फेर मेरा भीतरला घबराया,
दिमाक फेर चकराया,
जै इबकै नहीं बोवगा,
नाज कितै होवगा,
सारै बाजै बजा कै,
बाजरा बो दिया,
टाल के मुसा की बात,
सबे किमे खो दिया,
क्ुण म्हं तै हाल पड़ग्या,
भई उसे साल काल पड़ग्या,
फेर म्हं उसे बिल कै धौर्अ आया,
उसे मुसे तै दोबारा बतलाके आया,
रै वो मूसा नहीं रै मूसा का भेश था,
वो तो भगवान गणेष था,,
मूसां भेश म्हं आया था,
मैं उसनै ब्होत समझाया था,
गड्डे मुर्दे ना उखाड़ियो,
रै लोगो किसे का घर ना उजाड़ियो,
अर् मेरअ् तो समझ म्हं आगी,
आपणै तो अक्ल लागी,
अर् खूब कमाइयो, खूब खाइयो,
पर किसे जानवर नै ना सताइयो
संदीप कंवल भुरटाना

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