Wednesday, October 5, 2011

देवीलाल सा राम राज इब, जनता लायाणा चाहवै सै

संदीप कंवल भुरटाना





भाईयो आज के हालात तारै सामी सै इक लूट-खसोट की सरकार नै जनता तई धोखा दिया सै, आज यो बिचला इलैक्षन म्हं एक बार इन चार कलियां नै पढकै और थोडा सोचके चष्मे का बटन दबा दियो



लूट लिया ताउ प्रदेष तेरा, तु कदै हरियाणा आवै सै
देवीलाल सा राम राज इब, जनता लायाणा चाहवै सै।

बिन पिलसण बूढे मरग्ये, देवै ना सरकार
नौकरियां की बोली लाग्गै, ये रोवै बेरोजगार
प्रोपर्टी डीलर का धंधा कर री सै सरकार
माॅं-बहना पर लाठीचार्ज ओ जूल्मी अत्याचार
लायवां सा सरकार चैटाला नैया पार लैगावै सै
देवीलाल सा राम राज इब, जनता लायाणा चाहवै सै।

बिजली-पाणी बिन तंग पारै, तु दिल्ली भैज्य सारी
याणै बालक रूदन मचावै, तैन दया कति ना आरी
सारै काम अधूरे रहग्ये, किस्मत फूटी म्हारी
जूल्म सहन की हद हौल्यी सै धणी गरीबी छारी
रौवै सै सब नर-नारी, इब धणै पछतावै सै-2
देवीलाल सा राम राज इब, जनता लायाणा चाहवै सै।

दो जूण की रोटी कोन्या, करदी खूब मंहगाई
खाद, बीज के रेट बढ़ादिये,जमीदारां की करड़ाई
निर्धन जन का गला धोटकै, या सरकार चलाई
लूट-लूटकै सारी खाग्यै जनता की नेक कमाई
ईब होज्यागी मनचाही भाई, चष्में का बटन दबावै सै-3
देवीलाल सा राम राज इब, जनता लायाणा चाहवै सै।

हरियाणा का देख सोनिया, कर दिया सत्यानाष तनै
कांगे्रस का हाथ गरीब के साथ, करदी या बकवास तनै
धोखा दे कै वोट ले लिये, तोड़ दिया विष्वास तनै
मनमोहन भुरटाणे आला करवादे अहसास तनै
बात बता दू खास तनै, सरकार ईनेलो आवै स
देवीलाल सा राम राज इब, जनता लायाणा चाहवै सै।

लूट लिया ताउ प्रदेष तेरा, तु कदै हरियाणा आवै सै

Monday, September 26, 2011

आज-काल की राजनीति हलचल पै एक छोटी सी कविता भाईयो थोडा सा सोचियो अर भाई अजय सिंह चैटाला नै जिताईयो




आज मैं ताजा-ताजा बात लिख्ूंा सूं
राजनीति म्हं होरी खुबात लिखूं सू
सब गलियां म्हं रूका चालरा सै
घणे जणा का कालजा हालरा सै
सबकै मन म्हं थोड़ी-थोड़ी टेंशन सै
अर् भाईयो लोकसभा का यो बिचला इलैक्शन सैं।।

सारी गलियां म्हं रौनक आरी सै
कदे पजेरो के एंडेवर जारी सै
इबकै इलेक्सनां म्हं कौन जीतैगा
जनता सारी जिकर चलारी सै।।

चार पार्टियां के तीन जणै इलैक्शन लड़ण लागरैं सै
सबकै मन म्हं थोड़ा-थोड़ा मिठास भरण लागरैं सै
कोए अजय चैटाला नै अर कोए कुलदीप नै जितारा सै
कांग्रेस आले जेपी का तो इबे नंबर तीसरे पै आरा सै

अर कोए जात-पात, क्षेत्रवाद का नाम देणा चावै सै
अर कोए विकास के नाम पै बोट लेणा चावै सै
सिर्फ एक जणा अपणी छवि तै वोट जोडै सै
इलैक्शन का मुंह आप कानी मोडै सै

सारी जनता आज इस सरकार नै कौसे सै
मंहगाई बढ़ादी भाईयो गरीब का रूपया खोसे सै

एक नेता का बाबू एससी भाईचारा नै पाड़गा
एसी ए बी का जहर घोलगे आप पल्ला झाड़गा
आज ए अर बी आले उन्नै बोट देण का नाम नहीं लेन्दे
नूं कहवैं सै भाईचारा नै पाड़णियां नै बोट कोन्या देन्दे
नोन जाटां का नारा देके आपकी ए कमी करावै सै
यो ए नारा तो जाटा म्हं एकता बढ़ाव सै

जाट बोली कोम ना सै भाईयो, काम करके दिखावगें
मजबूत जाट नेता नै, जीता कै दिखावगें
अर क्यूं जितावगें, नेता तगड़ा पारया सै
मुख्यमंत्री का छौरा सै सारै छारया सै
सबे किते वो एंडी छवि बणारया सै
हर किसे नै आज चश्मा भारया सै
इनेलो एक बार फेर सत्ता म्हं आरया सै

मैं आज जो बात लिखी सै
सब तारतै ए सिखी सै
जनता आवाज लगारी सै
कांग्रेस नै दबारी सै

जात-पात करणियां नै जनता मजा चखावगी
जिसका बाप बणै मुख्यमंत्री, उसनै जितावगी
जो जीतैगा वो सारै छावगा
राज हरियाणा का पलटा खावगी

सारे पुराणी बात अर बादे नेता जी नै याद दुवाईयो
दाउं पुरा सोच - विचार करके बोट गैर के आईयो
आपकै बोट आए जरूर करवाईयो
जो हो उस महापुरूष का पोता
बटन चश्में का ए दबाईयो।।।।

Haryana Nirmat Yugporush.....Jannayak Tau Devilal ji ko yo Haryana aaj Bulave s ak Tau Aajya n Tanne Pukare Haryana

स्ंादीप कंवल भुरटाना
ओ ताउ आज्या नै तन्नै पुकारै हरियाणा
भोली-भाली जनता नै,यो लुट्टै बणके स्याणा

जिद भी हरियाणे म्हं ताउ कांग्रेस की सरकार आई सै,
आंदे-आंदे इसनै ताउ, लूटपाट मचाई सै,
गोते मार के दाल नापांदी, रौवे मेरी ताई सै,
चीनी, चावल सब किमे मंहगा, लाठी तोड मंहगाई सै,
गरीब आदमी नै ताउ, पडा बासी टिकड खाणा-1

टिम-टिम करके लाइट भाजगी, एक बर फेर आ ताउ,
नहर सुखगी पानी कोन्या, वो ए काम दिखा ताउ,
बूंढा की तन्नै पेंषन बणाई, दूूूसरा का ठप्पा मिटा ताउ,
होरी किसान की रे रे माटी, फेर खुषहाल बणा ताउ,
इस जनता के हाली नै, पडा फंदा गल म्हं लटकाणा-2

गरीब आदमी का ताउ ना होंदा इब गुजारा,
150 रू कमा के लावै, 200 का खर्चा आरा,
छोरी के जाण खातर ताउ, भाडा नहीं पारा,
अमीर आदमी और भी, अमीर होदंा जारा,,
इस मंहगाई का ताउ, कोए पडगा जत्न मनाणा-3

इस रूस्म पाटत नै छोडकै सारे भेद मिटा लो,
घणे प्यार तै कहंू लोगो, एक बर चष्में का बटन दबा लो,
सारे दुख दूर होज्यागें चाहे पहलां लिखवा लो,,
कंग्रेस गेल्यां लाग कै, बेषक गोडे तुडवा लो,
हरेक जणा का काम होवगा, यो कहवै सन्दीप भुरटाणा
ओ ताउ आज्या नै तन्नै पुकारै हरियाणा

Thursday, September 22, 2011

संदीप कंवल भुरटाना




सबे किम कर दिया मंहगा, जनता पै छुरी तलवार चलादी रै,
बिजली, पाणी कुछ कोन्या लोगो, या किसी सरकार बणादी रै।।।

पाणी-पाणी होरया था रै, कित गया रै पाणी
कोन्या आंदी भाइयो बिजली, कितै कांटा सानी
भलो-भलो के वोट लेग्ये, बात पहल्यां कोनी मानी
आंए ए बेबे नाटक रहग्या, देखां अधेरा कानी

इन धोलपोशा कअ झगडंा म्हं, या भोली जनता लडादी रै
बिजली, पाणी कुछ कोन्या लोगो, या किसी सरकार बणादी रै

चीनी मंहगी चावल मंहगा, सब किते हाय लागरी
बिस्कूट लावगा मेरा पापा, वा गुडिया रोवण लागरी
एक ताई देकची म्हं दाल का टुकडा टोवण लागरी
पिलशन मिलदी हाणी भी वा झगडे झोवण लागरी

इन भोले भाले लोगां कअ हाथां म्हं हथियार ठुआदी रै
बिजली, पाणी कुछ कोन्या लोगो, या किसी सरकार बणादी रै।।।

हरियाणा म्हं भी केन्द्र म्हं भी, फेर भी पाणी ना आया रै
एसवाईएल का मुददा कदे सीएम नै ना ठाया रै
काम करा एकला रोहतक म्ह बस पुलां पै घुमाया रै
खरीद फरोक्त मह जनता नै तकडा डीलर बताया रै

अर विदेशी कम्पनियां कअ हाथा म्हं जमीदारां की जमीन भी थमादी रै
बिजली, पाणी कुछ कोन्या लोगो, या किसी सरकार बणादी रै।।।

सारे जणे कटठे होके करो बातां का समाधान
एक एक आदमी नै समझाओ छेडा इब अभियान
इस गूंगी बहरी सरकार के खोल दो एकबे कान
जिद तक पाछे ना हटो बात ना ले मान

कह भुरटाणे आला एक बात इब तख्ता पलट बगादो रै
फेर याद करके उस देवी के लाल नै चश्मे पअ मोहर लगादो रै

फेर ना देखणी पडगी बिजली पाणी की बाट
होंगे इस जनता जनार्दन उस किसान के ठाठ
बात पक्की सै लोह लाट
आपां नै लिखदी साच्ची बात
या कईयां नै भूंडी भी लागगी
पर मेरी आई डी पै कुंडी भी लागगी
पर पाछे नहीं हटणे आले हाम
सबनै मेरी हाथ जोडके राम राम।।।।।।।।।।।

माटी के बेटे हैं हम
हम फर्ज निभाना जानते हैं,
एहसान की कीमत जानते हैं,
एहसान चुकाना जानते हैं
ये सर भले ही कट जाए
पीछे नहीं हटेंगे हम
हम जान की कीमत जानते हैं
हम जान लुटाना जानते हैं।।।।।।

Saturday, September 10, 2011

डॉ अजय सिंह चौटाला



ताउ चष्में का बटन दबाईये,
पिलषन इबकै दुगनी पाईये,
थारो एक रूखाला रै।
खुल्म-खुला जितै अजय सिंह चौटाला रै

ताई चष्मे का बटन दबाईये,
नये नये जमकर सूट सिमाईये,
पैड़ल सोनो आला रै।।
खुल्म-खुला जितै अजय सिंह चौटाला रै-

सेठ चष्मे का बटन दबाईये
सुरक्षा जीवन बीमा तू पाईयै
रै छोरे चष्में का बटन दबाईये
बढ़िया रोजगार पाईये
यारा करज्या चाला रै
खुल्म-खुला जिते अजय सिंह चौटालो रै।।

जमीदार चष्में का बटन दबाईये,
फसलां के भाव पूरे पाईये
खाद-बीज सस्ते पाल्यों रै

है बेबेे चष्में का बटन दबाइये
कन्या दान किसने दिया समझाईये
याने दियो सम्भाला रै
खुल्म-खुला जिते अजय सिंह चौटालो रै।।

जिला परिषद म्हं छाया
मंत्राी का भाई हराया
मनमोहन भुरटाणे आला रै
खुल्म-खुला जिते अजय सिंह चौटालो रै।।

Thursday, September 8, 2011

बाबु ओ बाबु यो सिरसा मन्नै खूब भाया

Sandeep Kanwal Bhurtana
सारे दोस्तां इस कविता पै कांमेंट जरूर करणा सै,,,,या कविता सै मेरे दोस्त भाई रमेश चहल फकड जाट की,
मेरे पै कविता लिखी थी भाई नै आज टेम मिला तो मन्नै भी चार लेन लिखी सै, जिसी इक लागै उसा भाव
दे दिया ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़ ़ ़ ़ ़ ़ संदीप कंवल भुरटाना



यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया

लागै जणु खुरा था
रंग उसका भूरा था
गुद्दी निचै नै करके, धरती नै देखके चालै था
छः फुटा द्यींग नै देखके कालजा सबका हालै था
धरती नै क्यंू देख था, यो सवाल मेरे मन म्हं घालै था
किसान का बेटा था दोस्तो, उस पवित्र मां नै संभालै था

मेरे गेल्यां 5 मिनट तई बडा हांस हांस बतलाया
सरसा शहर म्हं मन्नै एक फकड जाट पाया

नाम रमेश चहल सै उसका, बेटा बलवन्त किसान का
सच कहूं अखबार चलाया करै, छोरा हरिपुरा गाम का
हरियाणवी संस्कृति उपर ठाण नै बीडा उसनै ठा राख्या सै
कदे भी पिटारा खुल सकै सै , बणा राख्या पूूरा खाका सै

लख्मी रो पडा नाटक म्हं उसनै खूब म् रूवाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया

यारा का यार सै वो
कसूता होशियार से वो
नाना का रूम पै उसके तोडी से कई खाट
फिल्म देखण जाया करदे बज जांदे चही आठ
मन का मौजी सै वो इब फेसबुक पै छाया
बाबु ओ बाबु मन्नै एक एंडी जाट पाया

स्कीट, नाटक, चुटकले बनाण म्हं घणा कसूता हाई सै
मन्नै नूं लागै सै दोस्तो, वो मेहर सिहं की परछाई सै
लख्मी रो पडा नाटक म्हं भी, रस रागनियां का चाख्या सै
कुरूक्षेत्र यूनिस्टी म्हं भी पोजीसनां का धूमा पाड राख्या सै

के यू के म्हं पाटोडा गलै तै उसनै सुर म्हं गाणा गाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया

संस्कृति उपर लिखा करै वा सुथरे सुथरे गीत
कदे नहीं घबराया वो चहीं हार हो या जीत
उसकी कविता सुणके तो आदमी कै आंसु आज्यां
जिसनै दुख देख्या ना हो वो भी गसी खाज्या

कदे कदे स्टेज भरी म्हं मेरे यार नै ठूमका लाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट ठाया

सिरसा तै केयूके जांदी हाणी ढाकल गाम आवै सै
ओड म्हारे यार कुंडु के घरा लासी की टंकी पावै सै
यो फकड राम ओडे भी सारी रोटी बाजरा की खाग्या
टिंडी का घी भाइयो चटणी गेल्या ब्होत ए घणा खाग्या
सारी लासी की टंकी रितागा, बोतल लेज्यांदा ठाया
अर ताम ए बतादो अक मन्नै फकड जाट नहीं पाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया


पेपरा पाछै हाम दोनूं यूपी अर शिमला घूम के आये
उस फकड नै ओडे भी हाम हरियाणवी कुवाहे
गाजियाबाद म्हं डाकी नै रिक्सा आला पाछै बिठाया
आप बैठया गददी पै, अंगोछा गल म्हं बगाया
गोबर की मांद म्हं रिक्शा बाड दी, नाली म्हं पडा पाया
लाकै पाणी लिफाफा म्हं मन्नै, बडी मुश्कल तै धुवाया
वा रै अजय कवि तन्नै यो फकड जाट मिलाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया

मेरे उपर कविता लिखकै राजी घणा होरया सै
मेरा यार मेरा गुरू सै यो सन्दीप तन्नै टोरया सै
कदे तो बता दिया कर फकड तू कित खोरया सै,
लाम्बा लाम्बा ठाडा ठाडा तू टाली का पोरा सै

तू फेसबुक पै कै लिखै से भुरटाणा टोहया भी ना पाया
ले भाईयों आपां नै नहला पै दहला मार बगाया
दसेक दिन ओर रूकज्या, मैं यूं आया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया
बाबु ओ बाबु यो सिरसा मन्नै खूब भाया
यूनिस्टी म्हं एक फकड जाट पाया

संदीप कंवल भुरटाना

Sunday, September 4, 2011

माँ री माँ मनै एक इसा mst यार बणाया

माँ री माँ मनै एक इसा mst यार बणाया
MA करे पाछै पत्ते तोड़ गया टोह्या बी नी पाया

पहली साल की बात सै माँ
ठाडा उस का गात सै माँ
संदीप कँवल नाम सै माँ
... भुरटाना उसका गाम सै माँ
छोरीया तै घना शर्माए करदा
छोरया तै भी घाट बतलाये करदा
या झिझक तोड़ण खातेर उस पै सांग भी कराया
MA करे पाछै पत्ते तोड़ गया टोह्या बी नी पाया

अजय वर्मा नै पहली बरी मेरे तै मिलवाया था
मनमोहन का छोटा भाई सै साथ मै बतलाया था
पहली बार ओ मन कोरियोग्राफी मै फसाया था
बाद मै स्कीट के माह पुलिसिया बनवाया था
प्ले मै तो फेर ओ चंट हो लिया लाम्बे गाने गा कै
सांग बनया कदे सांगी अर कदे नाच्या धोती ठाकै
कुरुक्षेत्र मै किसान बणाकै स्टेज पै भी रुवाया
MA करे पाछै पत्ते तोड़ गया टोह्या बी नी पाया

यारा का ओ यार बण गया उसके कमरे पै धूमे ठाए
उस की गेल रह कै नै कई भुंडे सुथरे यार बनाये
कदे देखी फिल्म उस गेल कदे रामलीला
लेपटोप चोरी होगया हांडे ठाणे तसिला
कमरे पै यारो हमनै मिल कै खूब खीर बनाई
जांगडे तै ले कै बाह्मण तक सब तै खूब खुवाई
फ्री माइन्ड करण खातर मन ताश भी खेलना सीखाया
MA करे पाछै पत्ते तोड़ गया टोह्या बी नी पाया

कुछ दिन पाछै री माँ उस नै एक बणिया यार बणाया
गेल्या राख्या गेल्या खुवाया अर गेल्या ही सुवाया
फेर उस बणिये नै उस छोरे की यारी का मोल नी पाया
दस हजार तली दे कै भाज गया कदे फोन भी नी ठाया
बणिये खातर छोरे नै एक गाणा भी बणाया था
मित्र मण्डली मै बैठ कै उसनै कै बार सुणाया था
भाजे पाछै संदीप नै गाणा बी पाड़ बगाया ..........
MA करे पाछै पत्ते तोड़ गया टोह्या बी नी पाया


पेपरां पाछै दोनु एक बै शिमला घूम कै आये थे
चंडीगढ़ अर दिल्ली भी हामनै खूब जुते तुडाये थे
फेर होगया बियाह छोरे का ओह फुल्या नहीं समाया
चांग गाम मै जा कै छोरा चाँद सी बहु बयाह ल्याया
बियाह पाछै ओ छोरा ईद का चाँद बनदा जावै सै
कदे कादाये फेसबुक पै ऑनलाइन नजर आवै सै
जद भी दीखै सै गात मै होता नहीं समाया ...........
MA करे पाछै पत्ते तोड़ गया टोह्या बी नी पाया

माँ री माँ मनै एक इसा mst यार बणाया

MA करे पाछै पत्ते तोड़ गया टोह्या बी नी पाया


Tuesday, August 30, 2011

मेरा वो गीत अनजानेपनं में लिखा गया मगर आत्मा के पास आकर बैठ गया हाय रोज़ याद आवे स

BHAI V M BECHEN KI DHANSHU POEM




हाय रोज़ याद आवे स बचपन के दिन
रह-रह के मुहं चिढावे स बचपन के दिन

मेरी एक किलकी त, घर सिर प उठ ज्यां था
मैं खानी पीणी चीज़ां प, जद ए रूठ ज्यां था
स याद मैन्ने, मेरी थी तोतली जुबान
सुण ले था एक ब जो भी, होवे था हैरान
नाच्या करूं था पैरां में, घुंघरू बांध के
हो कितनी ऊँची चाहे चद ज्यूँ था कांध प
किसने फेर थ्यावे स, बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स ..........................

जाते स्कूल में हम, लेके पंजी दस्सी
ठंडा का फंड ना था, पिवा थे रोज़ लस्सी
वो सुलिया डंका और वो छुपम-छुपाई खेलना
माटी का घर बणाके माटी की रोटी बेलना
वो काटके न चप्पल, फेर पहिये बणाने
डंडी के साथ रेहडू, अर टायर चलाणे
आंख्या में आंसू ल्यावे स, बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स .......................

वा हरा समन्दर गोपीचन्द्र आळी कविता गाणी
फेर मछली त ए पुछना, बता दे कितना पाणी
वो गुल्ली डंडा अर वो कंच्या आल्ला खेल
वो चोर सिपाई अर वो नकली थाना जेल
वो लूटना पतंग का, अर गाम के उल्हाने
वो शर्त लाके नहरा पे, दिन में कई ब नहाने
उम्र भर रुलावे स बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

ना दुःख कोए ना चिंता, ना फ़िक्र कोए गम
बालकपणे में सचमुच, बादशाह थे हम
इब चुन तेल लकड़ी और फंस रे सां भंवर में
चाल्ला सां रोज़ लेकिन रह रे सां घर की घर में
जीते जी मन की इब, आरज़ू स याहे
जीवन में एक ब मस्ती, जीवन में फेर आये
बेचैन बणा जावे स , बचपन के दिन
हाय रोज़ याद आवे स ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
रह रह के मुहं चिढावे स ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Monday, August 29, 2011

हे मां मन्नै इसी जगां ब्याईए

सन्दीप कंवल भुरटाना


मन्नै कोख म्हं ना मरवाईए
मन्नै जाम कै दिखाईए
मन्नै छोड कै ना जाइए,
मेरे रजकै लाड़ लड़ाइए,
हे मां मन्नै इसी जगां ब्याईए
जड़ै क्याकैं का दुख ना हो।




छिक के रोटी खाइए,
अर मन्नै भी खुवाईए,,
जो चाहवै वो ए पाइए,
पर मन्नै इसी जगां ना ब्याइए,
जड़ै क्याकैं का सुख ना हो,,


मां तेरे पै ए आस सै,
पक्का ए विष्वास सै,
तू ए तो मेरी खास सै,
यो खास काम करके दिखाईए,,

मॉं की मैं दुलारी सुं,
ब्होत ए घणी प्यारी सुं,
दिल तैं भी सारी सुं,
पर कदे दिल ना दुखाईए,,

बाबु का काम करणा,
रूप्ए जमा करके धरणा,
इन बिना कती ना सरणा,
काम चला कै दिखाईए,

गरीबी तै तनै लड़-लड़कै,
रातां नै खेतां म्हं पड़-पड़कै,
अपणे हक खातर अड़-अड़कै,
बाबु ब्होत ए धन कमाइए।।
पर मन्नै इसी जगां ना ब्याईए
जडै क्याएं का सुख ना हो।

मंा-बाबु तामै मन्नै पालण आले
मैरे तो ताम आखर तक रूखाले
वे इबे मन्नै ना सै देखे भाले
कदे होज्या काच्ची उम्र म्हं चालै
मेरा घर राम सुख तै बसाईए
अर तु भी बेटी की हत्या नै रूकवाइए

दुनिया की हर मां नै समझाइए
रै लीली छतरी आले आइए
उजडदा घर नै बसवाइए
भुरटाना नै फेर चार बात बताईए
संदीप या कविता हर किते सुणाईए
हर किते सुणाईए, हर किते सुणाईए

मेरे कमरे के कोने में, रहता हूं मैं अकेला

SANDEEP BHURTANA



MUJHE

साथ नहीं चाहिए,,
मैं उब गया हूं दूनिया से,,
कुछ समय पहले,, मेरे आंगन में भी थी बेला

चाहत नहीं कोई रही अब मन में,,
पहले वाली बात नहीं अब तन में,,
दुख की दुनिया आ टपकी है, चला गया खुच्चियों का मेला

मन, चंचल, कोमल, निर्मल,,
अनजाने में आस लगाता,,
कितने दूर चले गए हैं,,
क्यों मैं उनको पास बुलाता,,
चल स्वर्ग राही अब तू तो, कितने नरकों को तूने क्षेला

आज यादें टूटकर घर तोड़ा है
अपने हाथों अपना सर फोड़ा है,,
किस्मत अच्छी है कंवल, तेरे साथ भी गया खेल है खेला
मेरे कमरे के कोने में, रहता हूं मैं अकेला

हरियाणा के सांस्कृतिक प्रहरी अनूप लाठर

sandeep Bhutania



1. हरियाणवी संस्कृति
हरियाणा आज सांस्कृतिक समृद्धि के शिखर पर है। स्वतंत्र भारत के नक्शे पर 1966 में उदय हुए इस छोटे से प्रदेश ने वह समय भी देखा जब इसकी अपनी सांस्कृतिक पहचान ही नहीं रही थी, और एक आज का दौर है जब यह प्रांंत सांस्कृतिक रूप से प्रौढ़ नजर आता है। एक प्रांत का अपनी लुप्त हो चुकी सांस्कृृतिक पहचान को पुन: उभारना व उसे निखार कर दुनिया को अचंभित कर देना कोई छोटी बात नहीं। इसके पीछे कारण तलाशने पर पता चालता है कि कोई न कोई हस्ति है जो इसके पीछे खुद को होम करके प्रदेश को सांस्कृतिक पहचान दिलवाने के लिये जीवन लगा चुकी है।
जैसे राजनैतिक उत्थान के लिये बलिदान की जरूरत होती है, उसी प्रकार सांस्कृतिक उत्थान व उसके बचाव के लिये भी बलिदान आवश्यक है। बलिदान का अर्थ यह नहीं कि शरीर त्याग कर ही आदमी उस मान को प्राप्त करे। बलिदान तो इच्छाओं, पद, पहचान, धन व लोभ-मोह का भी हो सकता है। सांस्कृतिक सैनिकों के लिये शारीरिक बलिदानों की अपेक्षा त्याग अधिक मायने रखता है, तभी वह संस्कृति को बचाने व उसके बढ़ाने में ध्वज वाहक का कार्य कर सकते हैं। अगर हरियाणवी संस्कृति पर दृष्टि पात करें तो हल्के से अवलोकन से ही ज्ञात हो जाता है कि यह कोई थोपी या अपनाई गई संस्कृति नहीं बल्कि इतिहास में दफन होने के बाद पुन: प्रतिष्ठित संस्कृति है, जोकि आज अपने प्राचीन गौरवमयी रूप को और निखार कर सामने आई है। समय के साथ इसने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। उत्तर भारत पर होने वाले बाहरी आक्रमणों व दिल्ली के नजदीक होने के कारण इसे अनेक बलित परिवर्तनों का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद इसका अपने रूप को पुन: प्राप्त कर लेना अपने आप में किसी घोर आश्चर्य से कम नहीं है। इस सांस्कृतिक उत्थान के पीछे अगर गहराई से नजर दौड़ाई जाए तो मालूम होता है कि कोई खुद को जलाकर इसे रोशन कर रहा है जिसके बल पर आज हरियाणवी संस्कृति के गौरववत् प्रत्येक हरियाणवी दुनिया में अपना भाल ऊंचा रखता है।
अनूप लाठर एक ऐसी शख्सियत हैं जिनके बलिदान, त्याग व सेवा स्वरूप आज हरियाणवी संस्कृति इस मुकाम पर है। इस शख्स की सांस्कृतिक साधना का ही परिणाम है कि आज देश के कोने-कोने से लेकर पाकिस्तान सहित दुनिया के दर्जनों देशों में हरियाणवी के दिवाने गर्व महसूस करते हैं। पिछले 30 वर्ष के उनके अनथक प्रयास की बदौलत आज हरियाणा के कितने ही युवक व युवतियां देश की भिन्न-भिन्न संस्कृतिक विधाओं में अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं। कला क्षेत्र से हट कर भी मीडिया जगत में उनके अनुयायी हर ओर देखने को मिलते हैं। अखबारों के डैस्क से लेकर समाचार चैनलों के ऐंकर और न्यूज हैड तक उनके मंजे हुए कलाकारों की बदौलत दुनिया के सामने हरियाणवी का प्रस्तुतिकरण किसी न किसी रूप में बखूबी हो रहा है।
अगर फिल्म जगत की बात की जाए तो माया नगरी मुम्बई की दहलीज़ पर भी आज हरियाणवी अपनी संस्कृति के साथ दस्त$ख दे चुकी हैं। आज अनूप लाठर की बदौलत एक ऐसी सांस्कृतिक सैनिकों की फौज तैयार हो चुकी है जिसे संगठित करके आज के फिल्म निर्माता व निदेशक हरियाणवी में उच्च दर्जे की कलात्मक हरियाणवी प्रस्तुतियां सामने ला सकते हैं। अब सही वक्त आ गया है कि हरियाणा का फिल्म निर्माता जागे और अपने प्रदेश के कलाकारों के बल पर अपनी संस्कृति को चलचित्र व छोटे पर्दे पर गौरव के साथ प्रस्तुत करे ताकि वर्षों के प्रयास से जिन्दा हुई यह गौरवमयी संस्कृति अपनी पहचान कायम रख सके।

Sunday, August 28, 2011

पम्प ब्होत नेता पम्प मारे सै अर जीत जा सै इनपै एक छोटी सी कविता


संदीप कंवल भुरटाना

सब क्यांए म्हं चालरै बडे बडे पम्प
मॉडल की हवा जिद बणे जिद वा चालै रैम्प
राजनीति म्हं दलबदलू नेता मिनत म्हं मारै जम्प
बात जम्प की चालरी,
लागजा आडा जम्प तो टूटज्यां हाड
जिसकी घणी लाठी हो, उसकी होंव ठाड
चोट लाग्यां पाच्छै लेणी पडै दवा
मैं बोल्या रै पम्प आलो, आड्डे पम्प भी मार लिया करो


पाछलै इलैक्शन की गलतिया नै, थोडा ब्होत सुधार लिया करो
न्यूं बोल्ये पम्प सही सै म्हारे इबे, तेल ग्रीस कर दयां सां
जै कोए नहीं मानै राम तै, सोड उसकी भर दयां सां
बात कसूती कहगे वो डर मन्नै भी लाग्या
उनकी भूंडी सूंडी सुणके मै तो घरा आग्या
राजनीति तै बडे किते नहीं घपले घपलम घम्प
सही हवा उसे की बणै जो मारै सही पम्प

अन्ना हजारे जिंदाबाद,,,,,,जिंदाबाद






भाईयों अन्ना जी के अनशन के बाद 6 बार अखबार म्हं मेरा फोटू भी आया
और हामनै भी आपणी औड तै ब्होत जोर लगाया माहरी अर सारे देश के
नौजवानां की मेहनत रंग लाई सै


अन्ना हजारे जिंदाबाद,,,,,,जिंदाबाद

कांग्रेस सरकार की हवा भाई अन्ना नै काड दी
निकम्मी सरकार नै भी आज तीन लीक काड दी
सोनिया भी देश छोड के भाजैगी
जद दिल्ली म्हं आग लागैगी
कोए नहीं बच पावगा
अन्ना का जन लोकपाल आवगा
घबराओ ना मेरे भाईयो
यो बिल जरूर पास हो जावगा
संदीप भुरटाना भी उसे दिन तै
सुख तै रोटी खावगा,
फेर एक गाणा और बणावगा

जन गण मन अन्ना जय हे,,,,,,,,,,,,,,,
या धरती भारत माता,
बाबुराव के लाल तूने
भ्रष्टाचार को खत्म कराता,,
जालिमो के राज को तूने,
कुछ दिनों में हिलाता
सारे देश भूखा है यहां
जब से तू अन्न न खाता
खा लेते हैं दो टूक हम,
असलियत में नहीं भाता
संदीप कंवल भुरटाणे वाला,
गुण तेरे सारै गाता,
भगवान का अवतार तू अन्ना
हर कोई आज तूझे चाहता

संदीप कंवल भुरटाना


Thursday, August 11, 2011

घरां रोटी ना पाई।

Sandeep Kanwal



आज मन्नै माहरै घरां रोटी ना पाई।
गाम का छोरा कुहवाण म्हं मन्नै शर्म आई।।
रोटियां का कै कहणा भाई, लासी नै नाटजा,
बात-बात पै होवंे रौले, झाल नै तु रै डाटजा,
इन रौले झगड़ा म्हं भाई का सिर फोडै़ भाई।
गाम का छोरा कुहवाण म्हं मन्नै शर्म आई।।
पहलां काम नै लोग बांट-बांट करा रै करते,
नाज के कुठले भी वै भरा रै करते,
घरां नाज की टंकी भी मन्नै खाली पाई।
गाम का छोरा कूवांण म्हं मन्नै शर्म आई।।
म्हारे गाम के लोगां नै यो काल खाग्या,
ताउ भरथु भी सारी अपणी जमीन डिगाग्या,
हाडैं थेपड़ी पाथदी वा माहरी ताई।
गाम का छोरा कूवांण म्हं मन्नै शर्म आई।।
हामनै भी गामै एक अभियान चलाणा होगा,
एक-एक बालक ध्यान तै खूब पढ़ाणा होगा,
फेर जगमग भुरटाणा होगा, या ए प्लान बणाई।
आज मन्नै माहरै घरां रोटी ना पाई।
गाम का छोरा कूवांण म्हं मन्नै शर्म आई।।

एक पक्षियों का जोड़ा


स्ंादीप कंवल भुरटाना
प्रेम मिलन चला हुआ है एक छोटी सी कतार में

, डुबा हुआ है। प्यार में।।

प्यार के खेल मेें, दोनों एक होते जाएं,
दोनों एक दूसरे के मन को मोहते जाएं,
फड़-फड़ पंखों से ये दिल अपना बहलाए,
म्ुाख में मुख लेकर ये अद्भूत प्रेम दिखंलाए,
मिलन का खेल सब जगह चल रहा है कतार में,
एक पक्षी साथ छोड़ गया,
साथी का दिल तोड़ गया,
क्या-क्या ख्वाब सजाए उसने,
वो वापिस उनको मोड़ गया,
टूटते-जुड़ते रिष्ते, हजारो हैं संसार में,
एक पक्षी दांए चला गया,
छूसरा पक्षी बांए चला गया,
क्लम कवि की रूक गयी,
एक खतरा भी टला गया,
लिखते-लिखते मन मेरा भी,
डूब गया खूमार में।।।

होसियार सिंह ’लाडी’ सन्दीप कंवल भुरटाना



.
इक जिंद निमाणी पिछे तू,
कातो होया फिरदा झल्ला वे,
बंदा बुलबुला पाणी दा,
ए साह पाणी दियां छल्ला वै।।
हुस्न वेख कदे यार बणाइये ना,
सपां नू कदे दूध प्लाईए ना,
आखर विच एहना डंगना हुंदै,
लग जांदा रोग अवला वै।।
पैसे दे ने सब यार ऐ थे,
तकड़िया बिच तुलदा प्यार ऐथे,
अपणेया ने ही सानु लुट्या ए,
साढ़ा झाड़ गए ओ पल्ला वै।।

जिसदे लई पल-पल मरदे रहे,
दुख जिसदे अपने सीने जड़दे रहे,
सानु छड़ गैरां संग तुर गए औ,
हुण रहा गया लाडी‘ कल्ला वै।।
बंदा बुलबुला पाणी दा,
ए साह पाणी दिया छल्ला वै।।

प्यार-व्यार के चक्र जालिम


सन्दीप कंवल

प्यार-व्यार के चक्र जालिम, क्यातैं तनै चला दिए।
कंपन होई प्रेम की दिल म्हं, क्यूं नीचै तई हला दिए।।
सीधा-सादा भोला-भाला दिल मैं आग लगाई क्यूं,
आग लगाकै तनै तो रै, सिंगा माटी ठाई क्यूं,
बुरा हाल कर्या रै उसका, वा सोण भी ना पाई क्यूं,
हर एक बात पै मेरा चेहरा, आंख्या मैं वा ल्याई क्यूं,
खाली बाग म्हं, तनै मालिक, ये किसे फूल खिला दिए।

छोटी-छोटी बात करण मैं वा, मजे लेण लागी,
जितणे मजे लेणे ले ले, दिल म्हं तू ए आगी,
तू तेर्अ नाम की मेरै दिल म्हं, जगां कसूत बणागी,
बेसक छोड़ दिए तू मन्नै, पर तू कती ना भुलाई जागी,
जो भी मन्नै भुलाणे थे, वे सारे इब भुला दिए।

दिल की बात हो बिना बताई, ना दिल म्हं रहणी चाहिए,
जो बात मन म्हं हौवे, झट दे सी कहणी चाहिए,
छोटी-छोटी बात भी, आराम तै सहणी चाहिए,
पेड़ पूरा मिलण लागरा, फेर क्यातैं टहणी चाहिए,
दूर-दूर रहण आले हाम्, फेर भी तनै मिला दिए।

जो काम भी कर्या सै तू, सोच समझ कै करा तनै,
एक छोरा अर् एक छोरी का, क्यातैं मन यो हर्या तनै,
तड़फाकै तू रै राजी होरा, पेटा भी ना भरा तनै,
दो जणे तो मार दिए रे, फेर भी कोन्या सरा तनै,
कंवल की जिन्दगी म्हं तन्नै, सुख के दिन रला दिए।
प्यार-व्यार के चक्र जालिम, क्यातैं तनै चला दिए।


अजनबी गलियों से

अजनबी गलियों से
निकल रहा एक लड़का
दांए, बांए घरों को देखता,
देखकर सोचता
मेरा भी होगा एक घर
आगे बढ़ता हुआ
चलता हुआ, ख्ुालता गेट
आती अंटी, देखकर मुस्कराई
क्या सोचा, क्या समझा, मैंने नहीं जाना
आगे मिला एक कुता
जो भौंक रहा था
सायद यही कह रहा था
आगे मत जाना
वहां खतरा है
मुड़ती, घुमती गलियों में से
गुजरता, आगे मिली एक सुन्दर बाला
सामने से आती हुई,
नीचे गर्दन किए हुए,
एकदम गुजर गई,
मन को चैन आया,
फिर आया एक मोड़,
वहां दिखाई दिया एक बच्चा,
मुझे बोला, अंकल आ गए,
मैं बोला आ गया बेटा,
धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था,
अपनी मंजिल तक,
फिर हुई मुलाकात एक गुलसन से,
नजारा देखकर समझ में आया,
आज फिर कुछ खास है,
आगे बढ़ा, देखा लगा हुआ पंडाल,
वहां पर सुरू हो रही थी रामलीला,
आखिर मंजिल आ ही गई,
वहीं अपना जर्जर मकान,
वही दोस्तों की महफिल,
वो ही छोटा सा कमरा
चलता हुआ पंखा छोड़कर गया कवि,
छत पर बैठे दोस्त,
सभी मस्त अपने अंदाज में,
सामने भी थी महक,
तैंयारियां चल रही थी,
सज रहे थें आज की रामलीला के लिए,
लिखता रहा, बोलता रहा,
सभी दोस्तों से की मुलाकात,
बताई एक छोटी सी बात,
सब हर्सित, मैं भी खुस,
बस एक पल, एक समय
जो आगे चला ही रहा था,
मैंने रोकी कलम, ठहर कदम,
आराम की खातिर, लेट गया,
बिछाकर पलंग,
उस छोटी सी बात में दम था,
कंवल भी कहां कम था,
बस लिखा डाला एक पैगाम,
सुनहरी साम, बस तेरे नाम ..............................
सन्दीप कंवल

आच्छा, गाम म्हारा सै।।

सन्दीप कंवल भुरटाना

गेहूं आले किलां म्हं, सिरसम का पेड़ा न्यारा सै,,
सारे गामां तै आच्छा, गाम म्हारा सै।।
पड़ी बछन्टी खेता म्हं, अमरूद खडे़ सै मेढ़ पै,
ला राखै सै सुंडिये, हांडे जीपसी रेड पै,,
बलद चालै रहट पै, चालै पाणी का झलारा सै,,
सारे गामां तै आच्छा, गाम म्हारा सै।।
गेहूं की टराली भरी खड़ी, चालण लागरी डरामी,
आम का पेडडा लदा पड़ा, खालै रै छोरे आमी,
एक छोरी खडी सामी, गुठली आम की खारा सै,,
सारे गामां तै आच्छा, गाम म्हारा सै।।
ट्यूबवैल पै थ्री फेस कनेक्षन, होरे सैं ठाठ रै,
ना क्याकैं की आडै टेन्षन, कहरा यो जाट रै,
कुए आले कोठडे का, रंगील नजारा सै,,
सारे गामां तै आच्छा, गाम म्हारा सै।।
भैसा खातर बो राखी, बरसीम, जई बाजरी,,
ताई भी भैसां गैल्या, लेके डंडा भाजरी,,
पनघट उपर छोरिंया का, लागरा लारा सै,,
ढाणी म्हं ब्याह होण लागरा, डीजै पै छारी मस्ती,
हाथ की कढोडी चालै सै, देषी सबतै सस्ती,
कह भुरटाणे आला छोरा, कसूता मजा आरा सै।।
सारे गामां तै आच्छा, गाम म्हारा सै।।




Thursday, August 4, 2011

चहक रही चिड़िया

Sandeep Bhurtania............ki 1 kavita Hindi m ...bhi..........padhiyo ....mere......Haryanvi Dhurndharon.........

चहक रही चिड़िया
को देखकर,
लगता हो गई सुबह,
उठना, घूमना, खाना,
पीना सब कुछ शुरू,
हो जाता है तब,
मुर्गे के बांघते ही,
पशुओं को चारा,
डालना कर देते है लोग,
पक्षी चहचहाते साथी,
मानव जीवन के,
पर पता नहीं चलता,
इनके सुख-दुख की घड़ियों का,
हरदम मस्ती में डूबे रहते है,
पर जब कोई चील या बाज,
आकर ले जाता है इनके अंडे,
कोई संाप खाता है जब इनके बच्चे,
तब तो पता चलता है,
इनके रूदन का,
कोसों दूर जाकर शाम को
घर आ जाते है,
जैसे कि मानव,
सारा दिन बाहर काम करके,
शाम को घर आता है,
बहुत से मेल खाते है,
इनके काम, मानव से,
पर हर समय खोये-खोये,
रहते है ये भी,
जैसे मानव भी खोया रहता है,
अपने सुख और दुखों के साथ,
ये भी भटकते रहते है,
सुख की चाह में,
झंुड बनाकर रहना,
मस्ती में डूबना,
फिर शाम को घर आना,
अपने बच्चो से प्यार करना,
सब वे ही काम जो
हम करते है जीवन में,
इस ये पता चलता है,,
कि जीवन एक है,
इसके जीने के तरीके अलग-अलग हैं,,
जैसे भगवान एक है,
उसको पाने के तरीके अलग-अलग हैं,,
ये सभी पहलू है जिंदगी के,,
खुशी से जीते जाओ मेरे यारो,,,
सन्दीप कंवल भुरटाणियां

Wednesday, August 3, 2011

संदीप कंवल भुरटाना

गामां के ठठ आडू नौजवाना नै एक संदेश

क तो खेत का काम ढंग तै कर लिया करो
अपणे बाबू का नाम रोशन कर दिया करो
उसका खंडका धरती म्ंह रगडवाके महान नहीं बणा जाया करदा
ब्याह करवाण की कह दिया करो जै उल्दे काम करा बिन ना सरदा

बाबा पीर की जय
छाती म्हं गोली लागी लाश नै देखके,,
एक बाप आपणे आसंुआ नै सारग्या,,
आज एक बाप आपणे बेटे तै हारग्या,,
अर वो बेटा जो सबमै न्यारा था,
मेरे ताउ ताई की आंख्या का तारा था,,
उसकी हालत देखके सारा गाम हारा था,
वो ओर किसे नै नहीं दोस्तो
म्हारे पडोसियां नै ए मारया था,
अर् बात कै थी,,,,,,,,,,,

एक दिन मेरा भाई भैसा नै चराण जारया था,,
औडे एक और भेंसा का टोल आर्या था,,
उस टोल म्हं एक भैंस जमा ताजा ब्यारी थी,
उस भैसां के टौल नै जमींदारा की छोरी ल्यारी थी,,
फेर एकदम इसा चाला होग्या,
छोरी कै गात का गाला होग्या,
गात गेल्यां हाथ भी पड़ग्या,
छोरी कै तो सांप लड़ग्या,
वा छोरी होई जावै आंधी,,
मेरे भाई नै पाटी बांधी,
इसा जोर का बंध लगाया,
जहर आगै जाण ना पाया,
अर छोरी नै गामै लियाया,
आकै वा ताउ रलदू तै दिखाई,
नू करके मेरे भाई नै उसकी जान बचाई,

जद् पाछै उस छोरी पक्का मन म्हं ठान लिया,,
मेरा भाई उसनै सब किमे मान लिया,
प्यार आले गुल खिलण लागै
वे लुक-छिप कै मिलण लागै,
बात घरकां तई पहुंचगी,
घरका की तो माटी कूटगी,
उसका प्यार आला भूत जागग्या
जमींदारा की छोरी नै ले के भाजगा
जमीदांरा नै मुकद्दमा बणवाया
मेरा ताउ पंचायत म्हं बुलाया
ताउ का खंडका जमीन म्हं रगडवाया
तीन लीक काडके मेरा ताउ रोदां घरा आया

फेर
दो-तीन महीने पाच्छे छोरी नै आपणा घरां फोन मिलाया
जमीदार नै फौन ठाया- अर बोल्या
बेटी चौबीसी के चौतरा पै बैठके न्याय करांगे
गामै उल्टे आ जाओ तारा ब्याह करांगे
दोनूंआ का दिमाग धक्का खाग्या
भाई उनकी भूला म्ह आग्या
उनके थे उल्टे लागै
दोनूं जणे गामै आगै
मारग्या फेरग्या उननै विश्वास
बुलाई फेर पंचायत अर खाप
पंचायत के बीच म्हं छोरी जिंदी गाड दी
अर मेरे भाई की छाती म्हं कै गोली काड दी

अर के खोट था उनका पंचायत आले फैसला करवां सकें थे
दोनूं परिवारां के रोले नै बैठकै सुलझा सकै थे
पर होणी नै कोण टाल सकै था
मेरा ताउ मारअ सारा गैल झखै था
जिद मेरा ताउ भाई की लाश नै लाण जारया था
उसका कालजा मुंह नै आरया था
कै कमी रहगी वो या ए बात विचारै था
रो-रो कै मेरा ताउ भींता कै टक्कर मारै था

जवानी म्हं गलती करण आलो, इस गलती नै बोच लिया करो
मां बाहण बाबू की रे-रे माटी होगी, थोडा सा सोच लिया करो
इन झूठे प्यार के चक्करा म्हं पडके, गहरी नींद सो जाओ सो
जिस मां बाप नै पाले पोशे, मिनटां म्हं खो जाओ सो
जवानी की गलती मैं आज हर कोए खोज्या सै
उसके इस काम पाच्छे घरकां का जीणा दूभर होज्या सै
आपणे दिमाग की नसां पर जोर दिया करो
बूढां धोरे बैठके किमे सीख लिया करो
रोलां झगडा चाल जाया करै पर प्यार प्रेम नहीं चाल्या करै
चोट लागोडी ठीक होज्या, पर या चोट रैध घाल्या करै
नौजवान भाईयो लिखियो, पढियो, नौकरी म्हं फंसियो
इन झूठै प्यार प्रेम मोह माया तै बचियो
धन्यवाद
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Tuesday, August 2, 2011

बदले हालात गामां कै

स्ंादीप कंवल भुरटाना
आज के गामां के हालात देख के ये चार कली लिखी सै भाईयों उम्मीद है तामनै पसंद आंवगी और जै हो सके तो गामां के हालात सुधारण की कोषिष जरूर करियो। ये चार लाइन तारै सामी सैं जिसा मन्नै लाग्या अर तामनै भी नुए लागै सै तो गाबरू गाबरू छोरा तै एक छोटी सी बात कहूं सूं, पंजाब कानी देखके , करदो काम

बदले हालात गामां कै

ना रहे गामां के वे हाल,
गाम हो लिए सैं कंगाल।।
किते भी तो ना दिखता यो भाईचारा रै,
जोहड़ सुखगा, सारै पाणी होग्या खारा रै,
धरती खोद कै नहर बणादी ना पाणी आरा रै,
फसलां का किते भी, ना सही भा थ्यारा रै,
फिरगा मोह माया का जाल,
गाम हो लिए सैं कंगाल।।

सारै रीति रिवाज मिटगे, कोए नोंदा नंुधार नहीं,
भाई-भाई न मारदे, किसे का भी प्यार नहीं,
गोड़ा नुवाण जाणा हो तो, कोए जाण नै तैयार नहीं,
सारै जणे पागल होरे, कोए रहा समझदार नहीं,
या भूंडी बणी कसूती ढाल,
गाम हो लिए सैं कंगाल।।

छोटी-छोटी बातां पै, होज्या बड़ा रौला रै,
थापड़-गुस्से की लड़ाई म्हं, उठ जा सै गोला रै,
खांच कै नै थापड़ लागज्या, होज्या छोरा धोला रै,
पुलिसिएं भी मजे लेरे, लुटै आदमी भोला रै,
सरपंचणी भी खागी माल,
गाम हो लिए सैं कंगाल।।


क्यातैं भूलगे रै लोगो ताम, थामनै कोए ख्याल नहीं,
के होगा थारे बालकां का, उनकी कोए रूखाल नहीं,
कहै भुरटाणे आला, अर्ै यो सतासी का काल नहीं,
कंवल की ना मानी तो, टूटै माया का जाल नहीं,
यो सन्दीप पूछै एक सवाल,
गाम हो लिए सैं कंगाल।।

संदीप कंवल भुरटाना

लो भाईयो तीज का मौका पै एक और गीत तारै नाम
जमा ताजा इबे लिखकै भेजू सूं,,,,,,,,,ठेठ हरियाणवी म्हं
सारे भाईयां नै लोग अर लुगाईयां, चाचा नै ताईया, बहु अर जमाईयां नै,,,,,तीज की ढेर सारी बधाईयां

छोरा गिरकाणा लागै घणा स्याणा, उठदी ए डाला पै चढाया
तीज का दिन यारों, मैं पींग घाल के आया।।।।।ं

सारे जणे मिलके झूलो,
पुराणे रीति-रिवाज ना भूलो,
दारू पी-पी ना रै टूलो सारा तई समझाया।ं
यो छोरा भुरटाणे का, पींघ घाल के आया।।

पींग शिखर आसमान चढाई
सासु का नाक तोड के लाई
सबेरे पहला फेसबुक आलो रै, कसूता मजा आया
यो छोरा भुरटाणे का, पींघ घाल के आया।।

गामां के सब रंग बदलगे,
त्यौहार मनाण के ढंग बदलगे
सबेरे पहलां मेरा बाबु, बरफी का डब्बा लाया।ं
यो छोरा भुरटाणे का, पींघ घाल के आया।।

हलवा सुहाली कोए ना मणावै,
समोसे, रसगुल्ल्ेा चाउमीन खावै,
पेट म्हं आफारा आवै, फेर इन्नो पाणी म्हं मिलाया
गैस का गोला फूटा भाइयों एटम बम्ब बणाया

साच्ची बात लिखके करै चाला
संदीप कंवल भुरटाणे आला
आपणे सारा का राम रूखाया, इबे यो गीत बणाया
दो मिनट लागण कोन्या दी, रत्नावली पै चढाया
यो छोरा भुरटाणे का, पींघ झूल के आया।।

संदीप भुरटाणियां

Wednesday, July 13, 2011

संदीप कंवल भुरटाना

म्हारे गामां का रंग भी न्यारा हो गया
हर जगां टूटा भाईचारा हो गया

पहलां नई बहु कुए पै जाया करदी
...छम छम छलकाकै पाणी लाया करदी
म्हारां कुए का पाणी भी खारा हो गया

पहला मिलजुल के लोग रहया करदे
सुख दुख अपणे वे सहया रै करदे
जमीदार का बेटा भी आवारा हो गया

पहला गामा म्हं सांग म्हं बुलाया करदे
ब्याह के वाणा म्हं ढोल बजाया करदे
इब तो डीजे भी सबनै प्यारा हो ग्या

तीज पींग पै बिठाकै झुलाया करदी
गीत सामण के वो गाया करदी
ब्याह म्ह सिटणे देके हंसाया करदी
कोर्ट आला ब्याह भी बटाधारी हो गया

सबे कित इब तो घलु घारा हो गया
छोरा गाम का भी गात तै भारा हो गया
रोज खादां गोलगप्पे टिक्की बरगर समोसे
संदीप कअ् पेट म्हं भी आफारा हो गया
म्हारे गामां का रंग भी न्यारा हो गया
हर जगां टूटा भाईचारा हो गया

संदीप भुरटाना

डाट लो उन झालां नै जो इबे गुजरी नहीं सै
आंत दुखै ब्होत सै, इबे कती बिखरी नहीं सै,
अर् एक बै प्यार तै बुला के तो देख तु,
घाव भर जांगे सारे, जो इबे दिखरी नहीं सै।।

SanSkrita Badalgi........mere Bhaiyo

सन्दीप कंवल भुरटाना
किमे भी तो ना मिलता, इस पीणे खाणें म्हं,
कुछै भी तो बचा नहीं, इस म्हारे हरियाणे म्हं।।

आज काल की छोरियां नै सूट पहरणै छोड़ दिए
...पहलां आलै रीति-रिवाज, एक झटकै म्हं तोड़ दिए,
जो देखे थे सपने लख्मी नैं, वे नुए सारे रोड़ दिए,
बदल गरी तेरी रागनी दादा, गीत तेरे सब मोड़दिए,
कोए भी तो डरता कोन्या, रोज जायावैं थाणे म्हं।

खेती करणिया किसान की, कमर तो्रडी सरकारां नैं,
क्दे लाठी,कदे गोली मारी, कै बिगाड़ा था बिचारां नै,
निर्दोस आदमी नै जिदे मारदे, ना पकडै हत्यारां नै,
उल्टे काम मिनट म्हं करदे, के गाड़ा इन सारा नैं
जोड़-तोड के गाणा गावैं, ना गाणा आवैं गाणे म्हं।

मां-बात नैं घर नै काढ़दे, इसी-इसी औलाद होरी दादा,
ताई भी दुख देख-देख के, इसे सोच म्हं खोरी दादा,
दिन पुराने उल्टे आजा, गावैं गीत फेर छोरी दादा,
काम सारे तू ठीक बणादै, ना मरेै कोए गौरी दादा,

पूरा माणस होग्या आधा, रोज कोर्ट कचहरी जाणे म्हं।

जिद तैं हरियाणे म्हं फैसन की आंधी आई सै,
इस बीमारी नै तो म्हारी इज्जत तार बगाई सै,
छोटे-छोटे लतडे़ सिमंे, टेलर भी होरे हाई सैं,
बेरा तै भी पाटै कोना,ये माणस सै के लुगाई सै,
क्ह सन्दीप भुरटाणे आला, इब मरै आदमी उल्हाणे म्हं,
कुछै भी तो बचा नहीं, इस म्हारे हरियाणे म्हं।।


Sandeep Bhurtania

Monday, July 11, 2011

बेटी नअ् मरवाओग तो बहु कडे तै लाओगे

संदीप कंवल भुरटाना

म्हारे हरियाणे के पंचायती अर् ठोलेदारां नै कहूं सूं अक् ताम बिना काम चौधर अर् मर्दानगी के पाले मांडे हांडण लाग रै सो, असलियत या सै तारी चौधर अर् मर्दानगी कुरडिया पै लहू लूहाण पडी सै---रै मेरे साथियो एक बार इस लक्ष्मी नै धरती पै आण दो--------बेटी नअ् मरवाओग तो बहु कडे तै लाओगे‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘‘

मां के गर्भ म्हं इस कन्या पै, मत ना छुरी चलाओ।
दया धर्म का खोज रह्या ना, मत ना जुल्म कमाओ।।
छोरी का भी इस दुनिया म्हं, आवण का हक पूरा सै,
मात-पिता के संग म्हं खेल्या, खावण का हक पूरा सै,
करकै बी ़ए ़एम ़ए फैदा, ठावण का हक पूरा सै,
ब्याह करवाकै साजन के घर, जावण का हक पूरा सै,
छोरा-छोरी एक बराबर, यो सारा भेद मिटाओ।
दया धर्म का खोज रह्या ना, मत ना जुल्म कमाओ।।
छोरी तै क्यूं नफरत सुणल्यो, कान खोलकै सारे,
काम नहीं यो इन्सानां का, क्यूं बणरै हत्यारे,
वो दिन दूर नहीं सै छोरे, हाडैं मारे मारे,
भोत घणी कम होग्यी छोरी, रहज्यां घणे कंवारे,
होज्यागी दुनिया म्हं हांसी, मत ना लोग हंसाओ।
दया धर्म का खोज रह्या ना, मत ना जुल्म कमाओ।


डी सी एस पी एम पी एम एल ए, छोरी चढ़ी शिखर म्हं,
बणरी सैं प्रधानमन्त्री, के फैदा घणे जिकर म्हं ,
अपणी किस्मत आप बणावैं, बैठे सोच फिकर म्हं,
न्यूं चमकै सैं छोरी सारै, जणु तारे अम्बर म्हं,
किसे चीज म्हं घाट नहीं सें, बेशक नजर घुमाओ।
दया धर्म का खोज रह्या ना, मत ना जुल्म कमाओ।।
बिना खोट में कितणी कन्या, नींद सदा की सोल्यी,
बन्द करो या बड़ी बीमारी, भोत घणी हद होली,
मेरे जन्म की खुशी मनाइयो, मां के पेट तैं बोल्यी,
इस दुनिया म्हं छोरी सै एक, चीज बड़ी अणमोली,
कह संदीप भुरटाणे आला, न्यूं सबनै समझाओ।
दया धर्म का खोज रह्या ना, मत ना जुल्म कमाओ।।

Sunday, July 10, 2011

सन्दीप कंवल भुरटाना

जिद म्हं मास्टर बण जाउंगा,
जिद म्हं मास्टर बण जाउंगा,
सारी धरती आसमान सर पअ् ठाउंगा,
क्यातैं राजी होरी सो मैडमांे,
मैं भी किसे मास्टरणी तै ब्याह करवाउंगा,
आच्छा सरकारी नाज खांवागें,
क्यातै बालकां नै पढ़ावांगे,
वा भी नींद म्हं बैठी उंघगी,
मेरअ् खातर स्वेटर गुनेगी,
अर् मैं भी आपणे गोधू का टोपा बणवाउंगा,
जिद मै मास्टर बण जाउंगा,
बिना नहाए फेर आवगी बासी,
बालका पै मंगवाके पिउंगा लासी,
मिड-डे-मील का राषन खाउंगा,
धर के पां मेज पै सो जाउंगा,
बालक भी खूब ए मौज उडावगें,
खेलदे-खेलदे मेरी टांगा तलै कै लिकड़ जावंगे,
जै कोणसा फसगा! उसपै एक बीड़ी का बंडल मंगवाउंगा
जद मैं मास्टर बण जाउंगा,,
खूब मारूंगा फरलो,
चाहे कोए किमे करलो,
सरपंच तै घणा प्यार सै,
बीओ आपणा रिष्तेदार सै,
बालक भी तो चार सैं,
मैं तो नुए मजे उडाउंगा,
जद मैं मास्टर बण जाउंगा,,,
राजनीति का ख्ूाब जमकै खेलूंगा खेल,
सारा नै पास करूंगा किसे न नहीं करूं फेल,
कोए अपरोच आला कोए पास हो अक्ल तै,
रह्या-सह्या का काम काढूंगा नक्ल तै,
नू कर कार कै नै बालकां नै आपणी बराबरी पै लाउंगा,
जद मैं मास्टर बण जाउंगा,,,
पार्टी कै टेम पै मन्नै मारली थी घूंट,
जितनी बात पहलंा कही वो थी झूठ,
सरकारी अर् प्राइवेट म्हं फर्क जाणूं रै,
सरकारी स्कूलां के मास्टर क्यूं बणगे परमाणु रै,
बालका पै इसा बम फोड़ देवं सैं,
हालात नै देखके बालक स्कूल छोड़ देवं सैं,
इननै सुधारण खातर कोए जत्न बणाणा होगा,
जवान-जवान छोरा नै, डंका फेर बजाणा होगा,
गुरु जीयां का दर्जा इन्नै फेर दुवाणा होगा,
सारे बालक पढ़ा पाछै, खुषहाल हरियाणा होगा,
फेर कोए मास्टर कोनी कहवै,
मैं धरती सर पै ठाउंगा,
जद मैं मास्टर बण जाउंगा,,,
सारे बालकां नै रज कै पढ़ाउंगा,
मिड-डे-मील का राषन नहीं खाउंगा,
अर् मेरे बालकां नै भी,
सरकारी स्कूल म्हं पढ़ाउंगा
षिक्षा, स्कूल और देष बचाके थाम यो एक एंडी काम करो,
आगली पीढ़ी याद करै, इसा के कोए काम करो,
एंडी मास्टर बणके नै, का उंचा नाम करो,
दिन-रात एक बणाकै, मेहनत सबेरे-षाम करो,
मैं संदीप कंवल भुरटाणे आला,
मास्टर बणा पाछै भी नुए कविता सुणाउंगा,,,,
जद मैं मास्टर बण जाउंगा ;;;;9

संदीप कंवल भुरटाना

किसे जानवर नै ना सताईयो
काल की बात थी,
काली-काली रात थी,
रात नै चाला होग्या,
गात का गाला होग्या,
काल सोमवार था,
म्हारा पाणी का वार था,
मन्नै जोडा टूटलिया गाड्डा,
अर मन्नै लाग्या ब्होत ए जाड्डा,
हिम्मत करके खेत म्हं आग्या,
एकलै नै ब्होत ए डर लाग्या,
इतणै म्हं आग्या मेरा काका,
दोनूंआ नै मिलके खोल्या नाका,
काका चल्या गया,
खतरा फेर ढल्या गया,
एक बिल म्हं पाणी बड़ग्या,
युद्व सा छिड़ग्या,
एक मूसा बिल म्हं तै लिकड के भाजगा,
अर मेरी जान सी काडगा,
लागै घणा स्याणा था,
एक आंख तै काणा था,
लाम्बी उसकी पूंछ थी,
किसारी बरगी मूंछ थी,
खामखां मेर गेल्यां फहगा,
जंादा-जांदा न्यू कहगा,
अर बोल्या भाई,
कितणी ए मेहनत करले,
कुछ नहीं होवगा,
तु तो सारी उम्र नुए,
खेतां म्हं सोवगा,
ब्ेाशक खेत कअ बाहर कै,
तार गाड़ दिए,
जै इसमे किम होज्या,
मेरी मूछ पाड़ दिए,
या कहकै बिल म्हं बड़गा,
अर मै चिन्ता म्हं पड़गा,
मैं सोच करण लाग्या,
एक विचार मन म्हं आग्या,
इबकै खेत नै खाली छोडद्या,
अर् हाल फाली सब तोड़द्या,
फेर मेरा भीतरला घबराया,
दिमाक फेर चकराया,
जै इबकै नहीं बोवगा,
नाज कितै होवगा,
सारै बाजै बजा कै,
बाजरा बो दिया,
टाल के मुसा की बात,
सबे किमे खो दिया,
क्ुण म्हं तै हाल पड़ग्या,
भई उसे साल काल पड़ग्या,
फेर म्हं उसे बिल कै धौर्अ आया,
उसे मुसे तै दोबारा बतलाके आया,
रै वो मूसा नहीं रै मूसा का भेश था,
वो तो भगवान गणेष था,,
मूसां भेश म्हं आया था,
मैं उसनै ब्होत समझाया था,
गड्डे मुर्दे ना उखाड़ियो,
रै लोगो किसे का घर ना उजाड़ियो,
अर् मेरअ् तो समझ म्हं आगी,
आपणै तो अक्ल लागी,
अर् खूब कमाइयो, खूब खाइयो,
पर किसे जानवर नै ना सताइयो
संदीप कंवल भुरटाना

Friday, July 8, 2011

Haryana ke Jan Nayak Tau Devilal

Haryana ke Jan Nayak Tau Devilal ko Samrpit..........ye Chand Line......

संदीप कँवल भुरटाना

ओ ताऊ .........आज्या नै तन्ने पुकारे हरियाणा
भोली भाली जनता नै यो लुट्टे बणके स्याणा ......
जिद भी हरियाणे मै ताऊ congress की सरकार आई सै
आंदे आंदे इसने ताऊ लूटपाट मचाई सै
गोते मार के दाल ना पांदी रोवे मेरी ताई सै
चीनी चावल सबे कीमे महंगा लाठी तोड महंगाई सै
गरीब आदमी न ताऊ पडा बासी टिकड़ खाणा
ओ ताऊ .........आज्या नै तन्ने पुकारे हरियाणा
गरीब आदमी का ताऊ इब होन्दा नहीं गुजारा
१५० रुपये कमा के लाव २०० का खर्चा आरा
छोरी कै जाण खातर ताऊ भाड़ा नहीं पारा
अमीर आदमी और भी अमीर होन्दा जारा
इस महंगाई का ताऊ कोए पडगा जत्न मनाणा
ओ ताऊ .........आज्या नै तन्ने पुकारे हरियाणा
टिम टिम करके लाइट भाजगी एक बार फेर आ ताऊ
नहर सूखगी पानी कोन्या वो ए काम दिखा ताऊ
बुड्डा की तन्ने पेंशन बनाई दूसरा का ठप्पा मिटा ताऊ
होरी किसान की रे रे माट्टी फेर खुशहाल बणा ताऊ
इस जनता के हाली नै पड़ा फंदा गल मह लटकाणा
ओ ताऊ .........आज्या नै तन्ने पुकारे हरियाणा
इस रूस्म पाटत नै छोडके सारे भेद मिटा लो
घणे प्यार तै कहूं लोगों एक बार चश्मे का बटन दबा लो
सारे दुःख दूर होज्यांगे चाहे इतिहास ठालो
कांग्रेस गेल्यां लाग के बेशक गोडे तुड़वा लो
हर एक जणा का काम होवेगा या कहवे संदीप भुरटाना
ओ ताऊ .........आज्या नै तन्ने पुकारे हरियाणा
ओ ताऊ .........आज्या नै तन्ने पुकारे हरियाणा
ओ ताऊ .........आज्या नै तन्ने पुकारे हरियाणा
संदीप भुरटाना

संदीप कंवल भुरटाना ब्याह

बाबा पीर की जय
म्हारे गामां के ब्याह के बारे में पूरा लेखा-जोखा, हिसाब-किताब अर् ब्याह जडअ् तै ष्षुरू होवे ओडे तै लैके आखर तक पहंुचाण की कोषिष करी सै, उम्मीद सै तामनै जरूर पंसद आवगी

संदीप कंवल भुरटाना

हर किसे कअ् चड्ढे चा,
जद होंदा होवै ब्याह,
गांमा की पुराणी रीत,
घरां गाए जावैं गीत,
सात-ग्यारह दिन का लग्न आवै,
छींक -छीक के नै मिठाई खावैं,
फेर दैंव घर आले बाना,
मीठा भैके रोटी खाणा,
चिन्ता भी फेर रोज हौवे,
उन दिनां म्हं मौज हौवे,
ब्याह तै पहलड़ा दिन भातियां का आणा,
गाम आलां का खाणा चालू करवाणा,
फेर मामे भरैं भात,
ब्होत करणी पडै़ खुबात,
भाई-बाहण कै सहारा लावै,
बूढ़ला की रीत निभावै,
लिखें भात खुलैं बही,
उसे रात फेर चढे तई,
गुड़ चीनी की चाष्णी छणे,
लाडू, जलेबी मिठाई बणे,
कोए बोचण म्हं फैदा ठाज्या,
अंधेरा म्हं लाडू खाज्या,
ब्याह का बड़ा मीठा खेल,
पहलड़ा दिन नै कहवां मेल,
बाने काढे गिण-गिण,
फेर आवै ब्याह आला दिन,
पहलां बनड़ा का तैल तारैं,
फोटू आलै भी झिमका मारैं,
सारे सिंगर डोल कै होज्या तैयार,
काडदे बनड़ा का त्यौहार,
बनड़ा नै नाई नुवांवै,
आच्छा साबण पाणी लावैं,
लाल लत्ता सिर उड़ा रै,
फेर मामा पाटड़ा पै तै तारै,
फेर बनडा कै जींजा की आवै बारी,
पहला टोपी मंदिर जाण की तैयारी,
चढ़ घोड़ी मंदिर म्हं जाणा,
फेर भगवान नै षीष नवाणा,
डीजै पै बाजै गाणे हिट,
यार दैवं सारे गिफट,
भाभी आंख्या म्हं कालस घालै,
मांगै नेक फेर नाड़ हालै,
फेर बाराती चालै होके लैट,
आगलै गामै फेर हौवे फेट,
करकै नै पूरी खुबात,
आगलै गांम फेर पहुचै बारात,
औडे मिलणी पै बुढे आवैं,
माला घाल गलै मिल जावैं
खातिरदारी की पहली निषानी,
कंपा कोला और षरबत का पानी,
दैव सालै जतावैं प्यार,
मिनट म्हं कहवै रिष्तेदार,
फेर पंडत जी आवैं,
रस्मुना सा करकै जावैं,
थोड़ी पुराणी रीत निभावैं,
बरी का सामान भी ले ज्यावैं,
फैर हौवे फेरां की तैयारी,
ब्हुंआ कें सिंगार म्हं टेम लागै भारी,
छोरे भी डीजै पै गाणै लगवांवै,
नाच-नाच के धूमैं ठावैं,
घणखरे ब्होत ए माच्चैं,
बेतल मुंह कअ् लाकै नाच्चै,
आज्या छोरीआलां का घर,
ढोलकियां की आरी मर,
फेर साली निम झारैं,
जोर का फटकारा मारैं,
एक रिबन भी कटवांवै,
राम दणी सी नैक लेज्यावैं,


कई छोरे अल्बाध कर ज्यावैं,
सपरे मार धोली कर ज्यावैं,
मजै आवैं जिब भतेरे,
फेर षुरू हो ज्यावैं फेरे,
छोरी नै लेके मामा आवै,
राम दणी सी पाटड़ा पै बिठावै,
पंडत जी ब्होत बार लगावै,
पिसे देदीं ए फेरे तावले करावै,
छोरी आलै दैंव ब्होत सामान,
फेर वो घालै कन्यादान,
घणी गर्मी म्हं चालै बीजणे,
सरी लुगाई दैंव सिटणे,
बनडे की बेबे ए,,,,,,,,,
भीड़ म्हं नहीं मिलै सीट,
फेर छोरी दैंव गिफट,
कैमरा आला गैंल्या करैं कैंस,
बोली खाली ना मारिए फलैस,
घूम-घूम सात फेरें हो ज्यावैं,
फेर सारे बाराती खाणा खावैं,
मेल-जोल म्हं होवैं सब फिदा,
आखर म्हं फेर हौवे विदा,
बूढे़-बडेरे की हौव मान तान,
कांबल, गुट्ठी का हौव दान,
लाल-लाल सी ठावै किताब,
सारै ब्याह का हौव हिसाब,
फेर आखरी घड़ी सै आई,
बारात की फेर हौव विदाई,
सबकी आंख्या म्हं आंसू आवैं,
जिद घर तै एक आदमी जावैं,
कुछैक घंटा म्हं मिटै चा,
न्यू हो ज्यावै सै भाईयों ब्याह,
हर किसे कअ चडढे चा,
जद होंदा हौवे ब्याह।।।।।।

संदीप कंवल भुरटाना